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शोभना यक्षिणी शाबर मंत्र साधना.

शोभना यक्षिणी शाबर मंत्र साधना.


कोरोना के वजह से मैंने ब्लॉग पर कोई आर्टिकल नही लिखा,आप सभी साधक साधिकाएं ठीक होंगे ऐसी आशा करता हु,माँ भगवती की कृपा से मैं भी ठीक हु। सम्पूर्ण जग में महामारी फैली हुई है और ऐसे समय मे ब्लॉग लिखना मुझे ठीक नही लगा परंतु अब यह महामारी कंट्रोल में है इसलिए आप सभी के लिए यह अदभुत साधना दे रहे है ।


यक्षिणी एक सौम्य और दैविक शक्ति होती है देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नम्बर आता है,हमारे भारतीय पौराणिक ग्रंथो में बहुत सारी प्रमुख रहस्यमयी जातियो का वर्णन मिलता है । जैसे कि देव गंधर्व ,यक्ष, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, ,भल्ल, किरात, नाग आदि यक्षिणी भी इन रहस्यमय शक्तियो के अंतर्गत आती है । देवताओं के कोषाध्यक्ष महर्षि पुलस्त्य पौत्र विश्रवा पुत्र कुबेर भी यक्ष जाती के हैं । जैसे कि देवताओं के राजा इंद्र है वैसे ही यक्ष यक्षिणी का राजा कुबेर है,कुबेर को यक्षराज बोला जाता है यक्ष यक्षिणीया कुबेर के आधीन होती है।


कुछ साधको के मन शंकाऐं होती है कि यह किस रूप मे सिद्ध होती है? कुछ लोगों की धारणा यह सिर्फ प्रेमिका रूप में सिद्ध की जा सकती है,जो कि बिलकुल गलत है,साधक इच्छा अनुसार किसी भी रूप सिद्ध कर सकता है । इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है, यक्षिणियों की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकारका व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, माँ के रूप में साधने पर वह ममतामयी होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं, ओर पत्नी या प्रेमिकाके रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख तो प्राप्त हो सकते हैं किन्तु उसे अपनी पत्नी व संतान से दूर हो जाना पड़ता है । उड्डीश तंत्र में जिक्र मिलता है कि इस को किसी भी रूप मे सिद्ध किया जा सकता है ।


सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।

भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥


तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहन , माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप में साधना अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।


इस श्लोक से उपरोक्त बात स्पष्ट होती है कि आप इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है ।


हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथो में बहुत सारे लोको का वर्णन मिलता है इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी देवता हैं जो इन लोकों में रहते हैं । पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीकि लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण कि यक्ष, अप्सरा, किन्नरी आदि की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास हैं।


साधनात्मक नियम


भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ॥

उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥


यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके ऊनी आसन पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीच में किसी से बात करें ।


नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।

यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥


अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें ।


शोभना यक्षिणी साधना-

आप इस साधना को घर पर ही सिद्ध कर सकते हैं यह जितनी सरल साधना उतनी ही प्रभावकारी भी हैं । शोभना यक्षिणी का रूप शांतिमय तेजस्विता से पूरण अत्यंत ही ख़ूबसूरत और यौवन आकर्षण से परिपूर्ण होती है। अगर वृद्धि व्यक्ति इस साधना करें एक युवक की तरह यौवनवान हो जाएगा । साधक काल के दिनो में साधक के शरीर जोश और चेहरे के उपर लालीमा और तेज आ जाता है । दिव्य आकर्षण शक्ति प्राप्त होती शत्रु के मन में आप के प्रति आदर भाव पैदा होता है अगर शादी शुदा हो पती पत्नी के रिश्ते में मधुरता आ जाती है । संसार में मान सम्मान की प्राप्ती होती है । साधना के दिनो में आप यह बदलाव महसूस करोगे । हर वह साधक जो साधना क्षेत्र में आगे नया है लेकिन तंत्र मंत्र साधना में आगे बढ़ना चाहता वह साधक शोभना से शुरुआत करनी चाहिए वैसे यह साधना हरेक के लिए है । प्रत्येक मनुष्य इस साधना को कर सकता है स्त्री पुरूष कर सकता है । अगर स्त्री करे तो अपार सुंदरता की प्राप्ती होती है।


साधना विधी – साधना में लाल आसन और लाल माला रक्त चंदन की लकड़ी की होनी चाहिए,साधक खुद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए । साधना वाले कमरे को पहले अच्छे तरह से साफ करे दूध से धोकर इत्र का पोचा लगाए । लाला रंग के आसन पर गंगा जल छिटकाव करना चाहिए । फिर वातावरण को सुगंधित करने के लिए गूगल की धूप जलाए । यक्षिणी मंत्र का 1 माला जप करे 41 दिन तक करे । साधक को साधना के दिनो में यक्षिणी के दर्शन हो पास आकर बैठ जाए बोले नहीं देवी को दूर से प्रणाम करें बिना पने आसन से उठे जप करते रहें ।


मंत्र


।। ॐ नमो आदेश गुरु को जगमगाती नगरी अलकापुरी निवासिनी शोभना यक्षिणी आवो आवो जागृत होकर दर्शन दो मेरा इच्छीत कार्य सिध्द करो ना करो तो यक्षराज के सेज पर सजो ************ की दुहाई मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा छू ।।



शोभना यक्षिणी साधक इच्छा अनुसार भोग विलास भी करती है ।


साधक त्रिकाल प्रदान करती है भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी भी प्रदान करती है ।


ईस साधना से साधक को यौवन शक्ति और सौदर्य की प्राप्ति होती है जिससे के साधक स्त्री और पुरुष सभी आकर्षित रहते ।


यक्षिणी साधक संसार शोभा और मान सम्मान दिलाती है इस लिए इस को शोभना यक्षिणी कहते है ।


पूर्ण मंत्र प्राप्त करने हेतू संपर्क करे,यहां दिया हुआ अधूरा मंत्र व्हाट्सएप पर पूरा दिया जाएगा,गोपनीय मंत्र है इसलिए ऐसे ही ब्लॉग पर देना संभव नही है । मंत्र निःशुल्क दिया जाएगा और मार्गदर्शन भी किया जायेगा ।

मोबाईल और व्हाट्सएप नम्बर-8421522368


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रजिया बेगम शाबर मंत्र साधना ।

रजिया बेगम शाबर मंत्र साधना ।


रजिया बेगम ने शासन पर 3 साल 6 महीने तथा 6 दिन राज किया,रज़िया भारत की प्रथम महिला शासक थी जिसका जन्म 1205 मे हुआ था । रज़िया ने पर्दा प्रथा का त्याग किया तथा पुरुषो की तरह खुले मुंह ही राजदरबार में जाती थी । रज़िया के शासन का बहुत जल्द अंत हो गया लेकिन उसने सफलता पूर्वक शासन चलाया, रज़िया में शासक के सभी गुण मौजूद थे लेकिन उसका स्त्री होना इन गुणों पर भारी था अत: उसके शासन का पतन उसकी व्यकतिगत असफलता नहीं थी ।

अपने शाषनकाल में रजिया ने अपने पुरे राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से करवाया । उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए इमारतो के निर्माण करवाए , सडके बनवाई और कुवे खुदवाए । उसने अपने राज्य में शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई विद्यालयों , संस्थानों , खोज संस्थानों और राजकीय पुस्तकालयों का निर्माण करवाया । उसने सभी संस्थानों में मुस्लिम शिक्षा के साथ साथ हिन्दू शिक्षा का भी समन्वय करवाया । उसने कला और संस्कृति को बढ़ाने के लिए कवियों ,कलाकारों और संगीतकारो को भी प्रोत्साहित किया था । इतिहास में रजिया बेगम के बारे में कुछ ज्यादा नही लिखा गया है,कोई कहेता है के उसका प्रेमी था तो कोई कहेता है नही था । इसलिए इतिहास से प्राप्त की जाने वाली जानकारी को समझना कठिन है,मैंने जो जानकारी प्राप्त की वह तंत्र विद्या के संदर्भ से है ।

रजिया बेगम को बुलाने की मंत्र विद्या आज भी राजस्थान के तांत्रिकों में गोपनीय है । एक राजस्थान के तांत्रिक थे जिन्होंने यह साधना मुझसे संपन्न करवाया था और उस मंत्र विद्या का परिणाम मुझे अच्छे से महसूस हुआ,यहां पर मैं अपने अनुभव नही लिख सकता क्योके यह साधना क्षेत्र के नियम के हिसाब से ठीक नही है । और जैसे मेरे सभी आर्टिकल चोरी हो जाते है,लोग कॉप्पी पेस्ट करके कहिना कही छाप देते है इसलिए किसी भी विषय पर लिखना इन चोरों के वजेसे कठिन हो गया है ।

रजिया बेगम मृत्यु के बाद तो आज के समय मे यह भुतिनी साधना के श्रेणी में आती है और मुझे यह मंत्र साधना जब प्राप्त हुई तो मेरे जानकार तांत्रिक के नोटबुक में कुछ ऐसा लिखा हुआ था "रजिया बेगम भुतिनी साधना" । नोटबुक में साधना पढ़ने के बाद मै इस साधना से काफी प्रभावित हुआ था क्योंकि यह मात्र इक्कीस दिन की साधना थी और उन इक्कीस दिनों में मुझे काफी अच्छे अनुभव प्राप्त हुए थे । यह साधना दुनिया के किसी भी किताब में नही है,यह एक प्रकार से साबर मंत्र विद्या है । 

तांत्रिक का नाम श्यामदास बाबा था और उन्होंने मुझे साधना के सभी पैलुओ पर सब कुछ ठीक तरह से समझाया,यहां तक कि साधना सामग्री के निर्माण हेतु उन्होंने मुझे दो दिन का समय दिया । एक प्रकार का विशेष नीले रंग का रत्न जो रजिया बेगम को पसंद था और उस रत्न को नदी के किनारे बबूल के पेड़ में छेद करके मंत्र बोलकर चौबीस घंटे तक रखना था । जब चौबीस घण्टे पूर्ण हो जाये तब मजमुआ का इत्र लगाकर उसे गुलाब की पंखुड़ियों पर रखकर घर लाना था और उस पर कुछ ईलम पढ़ने थे । वैसे तो मैं सिर्फ नवनाथ भगवान की साधना करता हु परंतु यह साधना शाबर मंत्र साधना थी इसलिए मैंने इस साधना के लिये मेहनत की,यह शाबर मंत्र साधना नही होती तो शायद मैं मेहनत नही करता । काले हकीक माला को भी प्राण प्रतिष्ठा किया जो 101 मनके की थी और रक्षा कवच का भी निर्माण तांत्रिक श्यामदास बाबा ने मेरे हाथों से करवाया । तब जाकर कहा मेरी साधना सामग्री बनी और मैंने साधना संपन्न की है,यह एक प्रामाणिक साधना है जिसका अनुभव आनंद दायक होता है ।

यह एक प्रकार से प्रत्यक्षीकरण साधना है,रजिया बेगम के प्रत्यक्षीकरण से जीवन मे कोई भी कार्य करवाये जा सकते है । यहां पर ज्यादा लिखना ठीक नही है इसलिए सिर्फ इतना ही लिखना चाहता हु के यह साधना करना जीवन का सुखद पल होता है ।

साधनात्मक अन्य जानकारी फोन पर या फिर व्हाट्सएप पर दी जाएगी,टाइम पास करने हेतु कृपया फोन ना करे,सिर्फ वही व्यक्ति फोन करे जो प्रत्यक्षीकरण साधनाओ में रुचि रखते हो । इस साधना में रजिया बेगम प्रत्यक्षीकरण रत्न,काली हकीक माला और रक्षा कवच की आवश्यकता होती है,जिसका न्योच्छावर राशि 3600/-रुपये निर्धारित किया है ।

जिन्हें साधना करनी है उनको साधना सामग्री के साथ रजिया बेगम प्रत्यक्षीकरण मंत्र दिए जाएंगे । साधना सामग्री के न्योच्छावर राशि बैंक अकाउंट से या फिर Paytm से भी भेज सकते है । इस साधना से सभी प्रकार के भौतिक लाभ प्राप्त करना संभव है ।

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+91-8421522368


यह साधना अदभुत अविस्मरणीय प्रामाणिक साधना है,जिसका जिक्र पहिली बार सिर्फ हमारे ब्लॉग पर किया जा रहा है ।




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स्वयं सिद्ध नऊ गुणि साबर मंत्र विद्या.

स्वयं सिद्ध नऊ गुणि साबर मंत्र विद्या.

महाराष्ट्र में दत्तात्रेय, नवनाथों के तंत्र-मंत्र-यंत्र का विशेष प्रभाव दिखाई देता है और महाराष्ट्र की मुख्य विद्या शाबर मंत्र विद्या है । यहां पर ग्रामीण मंत्र विद्या भी अपना विशेष स्थान रखता है, ग्रामीण शाबर मंत्रो का अपना एक विलक्षण प्रभाव है । यहां पर सबसे ज्यादा वनवासी विद्या को तिष्ण माना जाता है और ऐसे विद्या के जानकारों से अच्छी मित्रता महत्वपूर्ण होती है । यहा प्राचीन समय के तंत्राचार्यों ने कइ सारी विद्याओं को प्रगट किया एक विद्या का हम यहां उल्लेख करेंगे जैसे "नऊ गुणि विद्या" यह विद्या जालिन्दरनाथ जी के परम शिष्य कानिफनाथ जी से संबंधित है,कौल मार्ग के प्रमुख गुरु परंपरा में कानिफ नाथजी का स्थान महत्वपूर्ण है ।

आज हम जिस विद्या के विषय मे बात करने वाले है,यह अपने आप मे कामधेनु समान, सरल-सुगम, विलक्षण, प्रभावी, बेजोड़ है । जिसे हमारे यहा नऊ गुणि विद्या कहा जाता है,इस विद्या की विशेषता यह है कि यह जल्दी सिद्ध जागृत हो जाती है,ग्रहण काल मे बस एक 1 माला जाप से नऊ गुणि विद्या मंत्र सिद्ध हो जाता है,यह मंत्र ग्रहण में जो साधक नही कर सकते उन्हें कुछ दिनों तक जाप करने माध्यम से सिद्ध हो जाता है । जून माह में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण आनेवाला है,यह ग्रहण भारत मे दृश्य और पूर्ण प्रभावी है,इस ग्रहण का हमे अवश्य ही लाभ उठाना चाहिए । यह शाबर मंत्र दिखने में छोटा मंत्र है परंतु इसमें बड़े बड़े काम करने की अद्भुत क्षमता है । इस छोटे से मंत्र को सिर्फ 108 बार बोलकर आखिर में अपना इच्छीत कार्य जो है वह बोल दे जैसे शान्ति कर्म,कार्यसिद्धि के लिए, सम्मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण, सांप का जहर झाड़ना, किसी का रोग दुःख-दर्द दूर करना इत्यादि...वैसे इस मंत्र की गोपनीयता के बारे में भी आपको बताया जाएगा ।

यह विद्या बैठे जगह से 36 कोस मतलब 450 किलोमीटर के आस पास तक अपना पूर्ण प्रभाव दिखाती है और इसके आगे का काम करना हो तो कुछ समय में काम करता है । यह मंत्र अपने आपमे एक तेजपुंज है जो अपनी तेजस्विता से सभी कार्यो को पूर्ण करता है,इस अद्वितीय मंत्र को प्राप्त करके आप स्वयं ही अपने मनचाहे कार्य को सिद्ध कर सकते है परंतु किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य ना करे अन्यथा विश्वास के साथ कहेता हु बुरे काम करने से नुकसान होगा । आप जितने अच्छे काम करेंगे उतना ही मंत्र ओर ज्यादा प्रभावी होता रहेगा और आपके काम भी अधिक गति से पूर्ण होते जाएंगे,यह इस विद्या की खासियत है ।

पिछले आर्टिकल में आप सभी से नम्र निवेदन किया गया था के इस समय हम लोग हमारे कार्य मे व्यस्त है और समय को समझते हुए पीड़ित लोगों तक खाना-राशन-दवाइयों को पोहचाने का कार्य माँ भगवती जी के कृपा से चल रहा है । इस कार्य को अच्छेसे करने हेतु आप लोग आर्थिक सहायता करें ताकि पीड़ितों के सेवा हेतु हमारा कार्य ना रुके परंतु हमे अब तक पिछले आर्टिकल के माध्यम से 0.1% लोगो से ही मदत मिली है । जब 1000 लोग आर्टिकल पढ़ते है तो उसमें कोई एक व्यक्ति मदत करता है,हो सकता है कोई 100 रुपये देकर मदत करे या कोई 500 रुपये देकर मदत करे,हमे आप सभी से उचित आर्थिक मदत की उम्मीद थी परंतु निराशा प्राप्त हुयी ।


एक छोटीसी बात कहेना चाहता हु-

"लोग भूखे है,भिखारी नही
सहयोग करे,शर्मिंदा नही"


मेरे शहर की जनसंख्या 1 लाख 20 हजार है और अब तक 100 के आस पास कोरोना के मरीज पाए गए है,अभी तक 40 हजार लोगों को घर पर ही home quarantine करके रखा हुआ है,हमारे यहां ज्यादा लोग मजदूरी करके कमाकर जीवन जीते है । अभी आज सुना के जो महिला पुलिस वालो के लिए खाना बनाती थी वह भी कोरोना से संक्रमित निकली है,अब हो सकता है जो पुलिस वाले पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से सेवा कर रहे थे उनमें से 50% से ज्यादा पुलिस वाले कोरोना से संक्रमित हो ।

हमारे लिए सेवा कार्य अब बढ़ रहा है,समय बहोत भयंकर होता जा रहा है । धन-धान्य समाप्त होने पर है,यहां के व्यापारियों से बहोत अच्छी मदत मिली परंतु वो लोग भी कब तक मदत करेंगे ? सरकार से जो मदत प्राप्त होने की आशा थी अब वह आशा भी खत्म हो रही है,बोलते तो सभी है सरकार मदत करेगी परन्तु अभी तो यह देखने नही मिल रहा है । हो सकता है कुछ लोगो को सरकार के तरफ से राशन मिल रहा हो परंतु हमे तो सीधे सीधे पीडित लोगो तक पोहचकर मदत करनी है । सरकार और प्रशासन से प्राप्त होनेवाली मदत सीधे सीधे आसानी से प्राप्त होती नही दिखाई दे रही है । अब तो समय का चक्र यही कहेता है के सरकार को अपना कार्य करने दे और हमे भी अपना कार्य करते रहेना चाहिए क्योंकि मदत कोई भी करे हमे सिर्फ मदत से लेना देना है,किसी पर आक्षेप लेना हमारा काम नही है । मैंने पिछले बार भी हनुमानजी की कसम लेकर बोला था के आपसे प्राप्त आर्थिक मदत सीधे सीधे पीड़ितों को पोहचाने के का वचन देता हूं और इस बार भी यही वचन देता हू के "हनुमानजी की कसम लेकर बोल रहा हु आपसे प्राप्त आर्थिक सहायता धनराशि सीधे सीधे पीड़ितों के मदत हेतु ही पोहचायी जाएगी " ।

इस बार आपसे मदत प्राप्त करने हेतू नऊ गुणी विद्या का मंत्र और विधि विधान 501 रुपये आर्थिक सहायता धनराशि लिए बिना नही दिया जाएगा और कृपया कंजूस लोग दूर ही रहे क्योंकि आप लोग ऐसे दिव्य मंत्र प्राप्त करके भी किसी का भला नही कर सकते हो ।

बात क्या है ना ये जो गरीब लोग है,वो भूख से परेशान है,सोचते है के घर से बाहर जाएंगे तो कुछ खाने के लिए मिल जाएगा,इन्हें नही पता है के अभी इनके घर से बाहर निकलने से इन्हें क्या नुकसान होगा क्योंकि ज्यादा लोग तो इसमें देहाती है । मेरे शहर के सभी गरीब लोग शायद कोरोना से संक्रमित हो सकते है अगर इन्हें घर से बाहर निकलने से नही रोका तो । इन्हें रोकने का एक ही अवसर यह है के इनके जरूरत का सामान इनके घर तक पोहचाया जाए ।

4-5 दिन पहिले की बात है जब मैं सरकारी हॉस्पिटल गया था, यह देखने के लिए क्या वहा हम कुछ मदत कर सकते है । तो वहां एक गर्भवती महिला के माता ने एक दुखद बात बताई,बोल रही थी "कल रात में 9 बजे खाना मिला था और अब दोपहर 3 बज रहे है फिर भी खाना नही मिला" यह बात अत्यंत दुखदाई थी । वहा पर बहोत सारी गर्भवती महिलाएं थी जो कुछ ही दिनों में बच्चे को जन्म देने के लिए अप्सताल में भर्ती हुई थी और ऐसी महिलाओं को भूखा रखना पीड़ादायक है । दूसरे दिन हमने सुबह वहा नाश्ता पोहचाने का कार्य शुरू कर दिया है,इस तरह से हमारे कार्य को हमे आगे बढ़ाना है । हाथ मे माला लेकर जाप करने वाले हाथों से ज्यादा सेवा करने वाले हाथ समस्त देवताओं को प्रिय होते है,कृपया सहयोग करे ।

आर्थिक सहायता करने हेतु व्हाट्सएप पर अकाउंट डिटेल्स प्राप्त कर सकते हो या फिर Paytm से भी पेमेंट कर सकते है । अन्य किसी भी जानकारी हेतु व्हाट्सएप पर बात करे या फिर फोन कीजिएगा दोपहर 12 बजे से रात में 9 बजे तक,आप सभी से जो उम्मीद लगायी है उसे अवश्य सफल करे ।


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सर्व रोगनिवारण महाकाली साबर मंत्र साधना

आज आपको आर्टिकल पूरा ही पढ़ना पड़ेगा,क्योंकि अभी आपकी आवश्यकता सम्पूर्ण विश्व को है ।

आप सभी देश हित मे कुछ ना कुछ दान करे जैसे गरीब-असहाय्य लोगो की मदत करे और उनका नियमित रूप से ध्यान रखे,हमारे शास्त्रों में लिखा हुआ है-

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥

“दान देना कर्तव्य है” ऐसी भावना से जो दान देश, काल, और योग्य पात्र देखकर, प्रत्युपकार की भावना रखे बिगैर दिया जाता है वह सात्त्विक दान कहा गया है ।

इस श्लोक को समझकर मानवता का धर्म निभाये,हम लोग तो कल से सुबह से रात तक जहा भी हमारे क्षेत्र में हमारी जरूरत पड़ती है वहा पोहच जाते है,सभी गाड़ियों में डीज़ल फुल भरा हुआ है और गाड़ियों में चावल,आटा, दूध,नमक, प्याज,लहसुन,आलू आदि राशन-सब्जियों का सामान और कुछ दवाइयां रखे हुए है,जैसे हमे कहि से भी फोन आये हम सुरक्षिता के साथ पोहचकर लोगों की सेवा में लगे हुए है,पुलिस डिपार्टमेंट से सेवार्थी के पास भी बनवा लिए है जिससे लोगो तक मदत करने पोहच सके । इस नवरात्रि में सेवा भगवती की नही,भगवती के बच्चो की चल रही है और यही इस वर्ष की सबसे कठिन साधना है जिसका फल हमे मीले ना मीले कोई फर्क नही पड़ना है ।

इस देश के डॉक्टरों से भी मेरी प्रार्थना है के कोरोना वायरस का दवा बनाने हेतु अगर रिसर्च के लिए जिंदा मानव शरीर चाहिए तो मुझसे अवश्य संपर्क करे,मानवजाति के रक्षा हेतु मेरा जीवित शरीर मै दान करने के इच्छुक हु । मेरा लक्ष्य सिर्फ जनकल्याण है अतः इसके लिए मैं सब कुछ करने के लिए तय्यार हु । आप सभी लोग बिजली का कम से कम उपयोग करे ताकि सबको बिजली मिल सके क्योके अभी बिजली का प्रोडक्शन कम हो रहा है,जिनके पास सैनिटाइजर ना हो वह तुरटी का उपयोग करे । जो महिलाए सैनिटाइजर का उपयोग करती है उनको खाना बनाने से पहिले हाथ धोना जरूरी है क्योके 65-70% अल्कोहल सैनिटाइजर में होने के कारण हाथ मे आग लग सकती है । सभी प्रकार की सुरक्षिता जरूरी है और सदैव सुरक्षित रहे,आनेवाले तीन महीनों तक हमे सतर्क रहना है और लॉकडाउन से डरिये मत इसमें अपना पूर्ण समर्थन दीजिए । शायद जून महीने के आस-पास हमारा देश सुरक्षित देश माना जायेगा और इसलिए हमें शांति से समर्थन देना ही पड़ेगा ।


आप कुछ ही लोग (ज्यादा नही) साथ मे मिलकर जनकल्याण में सेवाएं देने हेतु कुछ छोटे छोटे ग्रुप बनाये और अवश्य गरीब असहाय्य लोगों को दान करे,अगर दान करने में आप धन-धान्य से असमर्थ हो तो paytm,google-pay या अपना bank account numbar अपने क्षेत्र के व्हाट्सएप ग्रुप में ड़ालकर लोगो से मदत मांगे,अगर कोई 1 रुपया 5 रुपया 50 रुपया भी देता हो तो अवश्य लीजिए इसमें कोई शर्म नही है । कोई धान्य आपको दान कर रहा है तो उसका स्वीकार करके अन्य असहाय्य लोगो तक पोहचाये,इसके लिए पहिले पुलिस डिपार्टमेंट से परमिशन लेना है उसके बाद ही कार्य करना है ।

जो लोग हमें मदत करना चाहते है,उनको मै अपना paytm numbar यही पर दे रहा हु और यही मेरा calling numbar है और यही मेरा whatsapp numbar भी है-
+91-8421522368 .

आज आप सभी की सख्त जरूरत है,आप इस समय मे अपने मानव धर्म का पालन करोगे तो आगे अवश्य ही अपने जीवन को बेहतर बना सकते हो । आप हमें जो भी दान करना चाहतों हो अवश्य करे क्योके यह कार्य मानवजाति हेतु एक महान कार्य माना जायेगा,अब आपको जीवन मे एक महान कार्य करना है जिससे आपकी महानता आपके नजरो में बढ सके । सरकारी सेवाएं गरीब असहाय्य लोगों तक पोहचने मे शायद समय लग जायेगा और मैं नही चाहता हु के तब तक लोग भूख से मरे ।


आप समर्थ हो तो हमसे अवश्य संपर्क करे और ज्यादा से ज्यादा दान करे ताकि आपसे प्राप्त दान को गरीब असहाय्य लोगों तक पोहचाया जाए । 

साथ मे एक मंत्र दे रहा हु जो रोगमुक्ति के लिए श्रेष्ठ मंत्र है,इस मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जाप करे, जाप स्वयं के लिए परिवार के लिए और समस्त मानव जाति के लिए कीजिएगा ।


मंत्र-

।। ॐ नमो आदेश गुरु को,काली काली महाकाली महाकाल की काली अपनी शक्ति से मेरे सभी रोग समाप्त करो मशान में जलाकर भस्म करो ना करो तो गुरु गोरखनाथ की दुहाई, गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा गुरु का मंत्र सच्चा चले छू ।।


मंत्र में "मेरे" के जगह पर रोगी का नाम लेकर भी जाप कर सकते हो,मंत्र सिद्धि हेतु 1008 बार मंत्र जाप जरूरी है और जाप के बाद काली मिर्च को घी में मिलाकर 108 बार आहुति भी देना जरूरी है ।

जब भी मंत्र का किसी के लिए उपयोग करना हो तो रोज 108 बार जाप करना है जब तक रोगी पूर्णतः निरोगी ना हो जाये तब तक । मंत्र सिद्धि हेतु दिशा-दक्षिण, वस्त्र आसन का कोई नियम नही है,साधना किसी भी दिन किसी भी समय से शुरू कर सकते है ।
अन्य किसी भी जानकारी हेतु अवश्य संपर्क करे,आप सभी का स्वागत है ।



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डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साबर मंत्र

डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साबर मंत्र


एक उग्र आलौकिक शक्ति डाकिनी.... डाकिनी, साकिनी, जल डंकिनी, थल डंकिनी के बारे में हम प्राय कभी ना कभी, कही ना कही सुनते रहते है । पर हमे इन शक्तियों के बारे में कुछ भी पता नही है । आखिर ये क्या है ? इनकी शक्ति क्या है ? तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है । प्राय मनुष्य डाकिनी नाम से परिचित हैं । डाकिनी कहते ही मानसपटल में एक उग्र स्वरुप की कृति मष्तिष्क में उत्पन्न होने लगती है । वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है । डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं । एक ऐसी शक्ति जो "डाक ले जाए" ।

प्राचीनकाल से वर्तमान तक पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है । चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना । यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है । तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है,यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है । यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है । यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है । यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं । इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है । जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं । तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से होती है और यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि करना आसान हो जाता है ।

काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि, काली या डाकिनी सिद्धी से अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध किया जा सकता हैं फीर उसके लीये कठीन साधना करने की जरूरत नही होती । कम प्रयासों में ही सिद्धी प्राप्त हो जाती है,इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है । डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है, हमारे अन्दर क्रूरता, क्रोध, अतिशय हिंसात्मक भाव, नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति के तरंगों से होती है । डाकिनी की सिद्धि या शक्ति से भूत- भविष्य- वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है । किसी को नियंत्रित करने की क्षमता, वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है । यह शक्ति साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी करती है । यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है ।

इसका स्वरुप अति उग्र हो जाता है । इस रूप में माधुर्य, कोमलताका अभाव होता है,सिद्धि के समय यह पहले साधक की ये बहुत परीक्षा लेती है,साधक को हर तरीके से आजमाती है,उसे डराती भी है । फिर तरह तरह के मोहक रूपों में साधक को भोग के लिए प्रेरित करती है,यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है इसलिए बिना रक्षा कवच धारण किये साधना ना करे । इसके भय और प्रलोभन से साधक बच गया तो सिद्धि का मार्ग आसान हो जाता है । मस्तिष्क को शून्य कर के या पूर्ण विवेक को त्यागकर निर्मल भाव में डूबकर ही साधना पुर्ण किया जा सकता है । डाकिनी और काली में व्यावहारिक अंतर है,जबकि यह शक्ति काली के अंतर्गत ही आती है । इस शक्ति को जगाना अति आवश्यक है , जबकि काली एक जाग्रत देवी शक्ति हैं । डाकिनी की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्ज होता है । तंत्र में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है ।

यह डाकिनी प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है । इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है ,यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है । इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है । यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक का मार्ग आसान हो जाता है । यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर वह शक्ति साधक को ख़त्म कर देती है , यह भूत-प्रेत- पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि उन्नत शक्ति होती है । यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है  और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो जाती है । इसके आसक्त होने पर सब काम रुक जाता है और उसका विनास होने लगता है । इसका स्वरुप एक सुन्दर, गौरवर्णीय, तीखे नाकनक्शे वाली युवती की जैसी होती है । जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है ।

काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना, विचरण और प्रभाव का विवरण ग्रंथो में मिलता है । इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है । इसको नष्ट नहीं किया जा सकता, यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है । जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी , इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता , अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है । सामान्यतया यह नदी-सरोवर के किनारों, घाटों, शमशानों, तंत्र पीठों, एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर हैं ।

आप इस वर्ष डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साधना में सफलता प्राप्त करे इस हेतु साधना को विधि विधान के साथ दे रहा हु,इस में मंत्र जाप हेतु रुद्राक्ष माला का प्रयोग करे,काला आसन हो और मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए ।


डाकिनी प्रत्यक्षीकरण शाबर मन्त्र:

।। ॐ नमो आदेश गुरु को स्यार की ख़वासिनी समंदर पार धाइ आव, बैठी हो तो आव-ठाडी हो तो ठाडी आव-जलती आ-उछलती आ न आये डाकनी,तो जालंधर बाबा कि आन शब्द साँचा पिंड कांचा फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा छू ।।


विधि: यह एक प्रत्यक्षीकरण की साधना है और प्रामाणिक मंत्र नववर्ष के आगमन पर दे रहा हु । किसी एकांत स्थान पर जहां चौराहा हो वहां पर रात के समय कुछ मास मदिरा व मिट्टी क दीपक, सरसों का तेल व सरसों लेकर जाय । काले आसन पर बैठकर नग्न होकर मन्त्र का ११ माला जप करें, सरसों के तेल का दीपक जला कर रख लें । अब हाथ में सरसों लेकर मन्त्र पढ़कर चारोँ दिशाओं में फेंक दें और दोबारा से मन्त्र जपना आरम्भ करें, मन में संकल्प रखें कि डाकिनी शीघ्र आकर दर्शन दे तो कुछ हि देर में दौडती-चिल्लाती और उछलती डाकनियां आ जायेँगी,उनको शराब और मास प्रदान करना है और जो भी मन मे हो वह मनोवांछित कार्य उनको बोल देना है,कार्य तुरंत पूर्ण होता है ।



आदेश.......



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मंगल दोष सम्पूर्ण विश्लेषण.

मंगल दोष सम्पूर्ण विश्लेषण.


मांगलिक दोष क्या होता है और कैसे ग्रह इस दोष को समाप्त करते हैं?

मंगल दोष जो कि ना केवल भारत में बल्कि अब विदेशों में भी लोग इसे मान ने लगे हैं आज हम इसका पूर्ण रूप से विश्लेषण कर रहे हैं कि कब दोष होता है कब दोष समाप्त होता है। 'मांगलिक' यह शब्द सुनते ही विवाह का लड्डू किरकिरा नज़र आने लगता है। जिस के साथ विवाह होना है यदि उसकी कुंडली में यह दशा मौजूद हो तो वह जीवनसाथी नहीं जीवनघाती लगने लगता है।

लेकिन बहुत बार जैसा ऊपरी तौर पर नज़र आता है वैसा असल में नहीं होता। ज्योतिषशास्त्री भी कहते हैं कि सिर्फ मांगलिक दोष के कारक भाव में मंगल के होने से ही मांगलिक दोष प्रभावी नहीं हो जाता बल्कि उसे घातक अन्य परिस्थितियां भी बनाती हैं। यह हानिकारक तभी होता है जब मंगल निकृष्ट राशि का व पापी भाव का हो। कहने का तात्पर्य है कि मांगलिक मात्र कुंडली का दोष नहीं है बल्कि यह कुछ परिस्थितियों में विशेष शुभ योग भी बन जाता है।

मंगल क्या होता है?

सर्वार्थ चिन्तामणि, चमत्कार चिन्तामणि, देवकेरलम्, अगस्त्य संहिता, भावदीपिका जैसे अनेक ज्योतिष ग्रन्थों में मंगल के बारे में एक प्रशस्त श्लोक मिलता है।

लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।
भार्याभर्तृविनाशाय, भर्तुश्च स्त्रीविनाशनम्।।

अर्थात् जन्म कुण्डली के लग्न स्थान से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुण्डली मंगलीक कहलाती है। पुरुष जातक की कुण्डली में यह स्थिति हो तो वह कुण्डली 'मौलिया मंगल' वाली कुण्डली कहलाती है तथा स्त्री जातक की कुण्डली में उपरोक्त ग्रह-स्थिति को 'चुनरी मंगल' वाली कुण्डली कहते हैं। इस श्लोक के अनुसार जिस पुरुष की कुण्डली में 'मौलिया मंगल' हो उसे 'चुनरी मंगल' वाली स्त्री के साथ विवाह करना चाहिए अन्यथा पति या पत्नी दोनों में से एक की मृत्यु हो जाती है।

यह श्लोक कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण लगता है परन्तु कई बार इसकी अकाट्य सत्यता नव दम्पत्ति के वैवाहिक जीवन पर अमिट बदनुमा दाग लगाकर छोड़ जाती है। उस समय हमारे पास पश्चा ताप के सिवा हमारे पास कुछ नहीं रहता। ज्योतिष सूचनाओं व सम्भावनाओं का शास्त्र है। इसका सही समय पर जो उपयोग कर लेता है वह धन्य हो जाता है और सोचता है वह सोचता ही रह जाता है, उस समय सिवाय पछतावे के कुछ शेष नहीं रहता।


क्या चन्द्रमा से भी मंगल देखना चाहिए?

बहुत जगह यह प्रश्न (विवाद) उठ खड़ा होता है कि क्या लग्न कुण्डली की तरह 'चन्द्र कुण्डली' से भी मंगल का विचार करना चाहिए। क्योंकि उपरोक्त प्रसिद्ध श्लोक में लग्ने शब्द दिया हुआ है यहां चन्द्रमा का उल्लेख नहीं है। इस शंका के समाधान हेतु हमें परवर्ती दो सूत्र मिलते हैं।


लग्नेन्दुभ्यां विचारणीयम्।

अर्थात् जन्म लग्न से एवं जन्म के चन्द्रमा दोनों से मंगल की स्थिति पर विचार करना चाहिए और भी कहा है-यदि जन्म चक्र एवं जन्म समय का ज्ञान न भी हो तो नाम राशि से जन्म तारीख के ग्रहों को स्थापित करके अर्थात् चन्द्र कुंडली बनाकर मंगल की स्थिति पर विचार किया जा सकता है। इस बारे में स्पष्ट वचन मिलता है।


अज्ञातजन्मनां नृणां, नामभे परिकल्पना।
तेनैव चिन्तयेत्सर्व, राशिकूटादि जन्मवत ।।

परन्तु यदि एक जातक का जन्म चक्र मौजूद हो और दूसरे का न हो तो दोनों की परिकल्पना भी नाम राशि से ही करनी चाहिए। एक का जन्म से, दूसरे का नाम से मिलान नहीं करना चाहिए।

जन्मभं जन्मधिषण्येन, नामधिषण्येन नामभम्, व्यत्ययेन यदायोज्यं, दम्पत्योनिर्धनं ध्रुवम्।

अत: आज के युग में तात्कालिक समय में भी मंगलीक दोष की गणना संभव है। भौम पंचक दोष किसे कहते हैं? क्या शनि, राहु व अन्य क्रूर ग्रहों के कारण कुण्डली मंगलीक कहलाती है?

चन्द्राद् व्ययाष्टमे मदसुखे राहुः कुजार्की तथा।
कन्याचेद् वरनाशकृत वरवधूहानिः ध्रुवं जायते।।

मंगल, शनि, राहु, केतु, सूर्य ये पांच क्रूर होते हैं अतः उपरोक्त स्थानों में इनकी स्थिति व सप्तमेश की ६,८,१२ वें घर में स्थिति भी मंगलीक दोष को उत्पन्न करती है। यह भौम पंचक दोष कहलाता है।
द्वितीय भाव भी उपरोक्त ग्रहों से दूषित हो तो भी उसके दोष शमनादि पर विचार अभीष्ट है। विवाहार्थ द्रष्टव्य भावों में दूसरा, १२वां भाव का विशेष स्थान है। दूसरा कुटुम्ब वृद्धि से सम्बन्धित है. १२वां भाव शय्या सुख से। चतुर्थ भाव में मंगल, घर का सुख नष्ट करता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का स्थान है, वहां पत्नी व पति के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है। के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है। के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है।

१. लग्न में मंगल अपनी दृष्टि से १,४,७,८ भावों को प्रभावित करेगा। यदि दुष्ट है तो शरीर व गुप्तांग को बिगाड़ेगा। रति सुख में कमी करेगा। दाम्पत्य सुख बिगाड़ेगा।

२. इसी तरह सप्तमस्थ मंगल, पति, पिता,शरीर और कुटुम्ब सौख्य को प्रभावित करेगा। सप्तम में मंगल पत्नी के सुख को नष्ट करता है जब गृहणी (घर वाली) ही न रहे तो घर कैसा?

३. चतुर्थस्थ मंगल-सौख्य पति, पिता और लाभ को प्रभावित करेगा। चतुर्थ में मंगल घर का सुख नष्ट करता है।

४. लिंगमूल से गुदावधि अष्टम भाव होता है। अष्टमस्थ मंगल इन्द्रिय सुख, लाभ, आयु को व भाई बहनों को गलत ढंग से प्रभावित करेगा।

५. द्वादश भाव शयन सुख कहलाता है। शय्या का परमसुख कान्ता हैं। बारहवें मंगल शयन सुख की हानि करता है। धनस्थ मंगल-कुटुम्ब संतान, इन्द्रिय सुख, आवक व भाग्य को, एकमत से पिता को प्रभावित करेगा।

अत: इन स्थानों में मंगल की एवं अन्य क्रूर ग्रहों की स्थिति नेष्ट मानी गई है। खासकर अष्टमस्थ ग्रहों नूनं न स्त्रियां शोभना मतः (स्त्री जातक) अत: अष्टम और सप्तमस्थ मंगल का दोष तो बहुत प्रभावी है।
स्त्रियों की कामवासना का मंगल से विशेष संबंध है। यह रज है। मासिक धर्म की गड़बड़ियां प्रायः इसी से दूषित होती है। पुरुष की कामवासना का संबंध शुक्र (वीर्य) से है। मंगल रक्तवर्णीय है और शुक्र श्वेतवर्णीय है। इन दोनों के शुभ होने व समागम से ही संतान पुष्ट और वीर्यवान् होती है। अगर कुण्डली में किसी भी दृष्टि से मंगल व शुक्र का संबंध न हो तो संतानोत्पति दुष्कर है। विवाह का एक मुख्य लक्ष्य संतानोत्पति भी है। (ऋतु बराबर मंगल, रेतस् बराबर शुक्र) संतान के बिना स्त्री-पुरुष दोनों ही अपूर्ण व अधूरे रहते हैं।

ऋतु रेतो न पश्येत, रेतं न ऋतु स्तथा।
अप्रसूतो भवेज्जातः परिणीता बहुस्त्रियां।।

मंगल मकर में उच्च का होता है और शुक्र मीन में। संस्कृत में कामदेव का मकरध्वज नाम से संबोधित किया जाता है, और उसको मीन केतु भी कहा है जिसकी ध्वजा में मीन है। मीन व मकर दोनों जल के प्राणी हैं। कामदेव को भी जल तत्त्व प्रधान माना गया है। बसन्त पंचमी को प्रायः शुक्र जब अपनी मीन राशि में आता है तब इसका जन्म माना जाता है। फूलों में पराग का जन्म ही रजोदर्शन है। रजोदर्शन ही बसंत है जो कि जवानी का प्रतीक माना गया है।

कामदेव के पांच बाण हैं शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध। इन सबमें उस समय कन्या के कौमार्य की छटा निखरकर, बासन्ती बन जाती है जब कामोपभोग योग्य बनती है। मंगल रक्त विकास और रक्त की वृद्धि दोनों में सहायक है जैसी इसकी स्थिति हो। सप्तम भवन पति के कारण पत्नी, कामदेव व रतिक्रीड़ा आदि का विचार अत्यन्त होता है।

क्या द्वितीयस्थ मंगल को भी मंगल दोष में माना जाएगा?
जन्म कुण्डली में द्वितीय भाव दक्षिण नेत्र, धन, वाणी, वाक् चातुर्य एवं मारक स्थान का माना गया है। द्वितीय भावस्थ मंगल वाणी में दोष, कुटुम्ब में कलह कराता है। द्वितीय भाव में स्थिति मंगल की पूर्ण दृष्टि पंचम, अष्टम एवं नवम में भाव पर होती है। फलतः ऐसा मंगल सन्तति, स्वास्थ्य (आयु) एवं भाग्य में रुकावट डालता है कहा भी है।

भवेत्तस्य किं विद्यमाने कुटुम्बे, धने वा कुजे तस्य लब्धे धने किम्।
यथा त्रोटयेत् मर्कटः कण्ठहार पुनः सम्मुखं को भवेद्वादभग्नः।।


द्वितीय भाव में मंगल वाला कुटुम्बी क्या काम का?

क्योंकि उसके पास धन-वैभव होते हुए भी वह (जातक) अपने स्वयं का या कुटुम्ब का भला ठीक उसी तरह से नहीं कर सकता, जिस तरह से बन्दर अपने गले में पड़ी हुई बहुमूल्य मणियों के हार का सुख व उपयोग नहीं पहचान पाता? बन्दर तो उस मणिमाला को साधारण-सूत्र समझकर तोड़कर फेंक देगा। किसी को देगा भी नहीं। द्वितीय मंगल वाला व्यक्ति ठीक इसी प्रकार से प्रारब्ध से प्राप्त धन को नष्ट कर देता है तथा कुटुम्बीजनों से व्यर्थ का झगड़ा करता रहता है।
द्वितीय भावस्थ मंगल जीवन साथी के स्वास्थ्य को अव्यवस्थित करता है तथा परिजनों में विवाद उत्पन्न करता है। अतः द्वितीय स्थ मंगल वाले व्यक्ति से सावधानी अनिवार्य है। परन्तु मंगल दोष मेलापक में द्वितीयस्थ मंगल को स्थान नहीं दिया गया है, यह बात प्रबुद्ध पाठकों को भली-भांति जान लेनी चाहिए।
डबल व त्रिबल मंगली दोष क्या होता है? कैसे होता है?

प्राय: ज्योतिषी लोग कहते हैं कि यह कुण्डली तो डबल मांगलिक, त्रिबल मांगलिक है। मंगल डबल कैसे हो जाता है? यह कौन सी विधि (गणित) है? इसका समाधान इस प्रकार है।

१. जब किसी कुण्डली के 1/4/7/8 या 12वें भाव में मंगल हो तो वह कुण्डली मांगलिक कहलाती है। इसे हम (सिंगल) मांगलिक कह सकते हैं।

२. इन्हीं भावों में यदि मंगल अपनी नीच राशि में होकर बैठा हो तो मंगल द्विगुणित प्रभाव डालेगा तो ऐसे में वह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मांगलिक कहलाएगी।

३. अथवा 1/477/8/12वें भावों में शनि, राहु, केतु या सूर्य इनमें से कोई ग्रह हो तथा मंगल हो तो ऐसे में भी यह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मांगलिक कहलाएगी।

४. मंगल नीच का प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वितीय भावों में हो, साथ में यदि राहु. शनि, केतु या सूर्य हो तो ऐसे में यह कुण्डली त्रिबल (ट्रिबल) मांगलिक कहलाएगी क्योंकि मंगल दोष इस कुण्डली में तीन गुणा बढ़ जाता है।

५. इस प्रकार से एक कुण्डली अधिकतम पंचगुणित मंगल दोष वाली हो सकती है। तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। अब कुछ उदाहरण देंखे,मंगलीक दोष निवारण के कुछ बहुमूल्य सूत्र :-

उपरोक्त सभी सूत्रों को जब हम प्रत्येक कुण्डली पर घटित करेंगे तो 80 प्रतिशत जन्म कुण्डलीयां मंगल दोष वाली ही दिखलाई पड़ेंगी। इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि परवर्ती कारिकाओं में मंगल दोष परिहार के इतने प्रमाण मिलते हैं कि इनमें से आधी से ऊपर कुण्डलीयां तो स्वतः ही परिहार वचनों से मंगल होते हुए भी मंगल दोष-रहित हो जाती हैं अर्थात् यदि पुरुष की कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भावों में शनि, राहु या सूर्य हो तो मंगल का मिलान हो जाता है। इसमें कुछ भी परेशानी नहीं है। सारी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है। उनमें से कुछ सूत्र इस प्रकार हैं।

अजे लग्ने, व्यये चापे, पाताले वृश्चिके स्थिते।
वृषे जाये, घटे रन्ध्र, भौमदोषो न विद्यते।।१।।

मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे भाव में, वृषभ का सप्तम में, कुम्भ का आठवें भाव में हो तो भौम दोष नहीं रहता।।१।।

नीचस्थो रिपुराशिस्थः खेटो भावविनाशकः।
मूलस्वतुंगामित्रस्था भाववृद्धि करोत्यलम् ।।२।। -जातक पारिजात

अतः स्व (१,८) मूल त्रिकोण, उच्च (१०) मित्रस्थ (५,९,१२) राशि अर्थात् सूर्य, गुरु और चन्द्रक्षेत्री हो तो भौम का दोष नहीं रहता ।।२।।

अर्केन्दुक्षेत्रजातानां, कुजदोषो न विद्यते।
स्वोच्चमित्रभजातानां तद् दोषो न भवेत् किल।।३।।

सिंह लग्न और कर्क लग्न में भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं है।।३।।

शनिः भौमोऽथवा कश्चित्, पापो वा तादृशो भवेत्।
तेष्वेव भवनेष्वेव, भौमदोषविनाशकृत् ।।४।।

शनि, मंगल अथवा कोई भी पाप ग्रह राहु, सूर्य, केतु अगर १, ४, ७, ८, १२ वें भाव में कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों में वर के भी हों तो भौम दोष नष्ट होता है। मंगल के स्थान पर दूसरी कुण्डली में शनि या पांच ग्रहों में से एक भी हो, तो उस दोष को काटता है।।४।।

यामित्रे च यदा सौरिःलग्ने वा हिबुकेऽथवा।
अष्टमे द्वादशे वापि भौमदोषविनाशकृत्।।५।।

शनि यदि १,४,७,८,१२ वें भाव में एक की कुण्डली में हो और दूसरे की कुण्डली में इन्हीं स्थानों में से एक किसी स्थान में मंगल हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।।५।।

केन्द्रे कोणे शुभोदये च, त्रिषडायेऽपि असद् ग्रहाः।
तदा भौमस्य दोषो न, मवने मवपस्तथा।।६।।

तृतीय, षष्ठ, एकादश भावों में अशुभ ग्रह हों और केन्द्र १, ४, ७, १०, व कोण ५,९, में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सातवें हो तो मंगल का दोष नहीं रहता।।६।।
सबले गुरौ भृगौ वा लग्नेऽपिवा अथवा भौमे।

वक्रिणि नीचगृहे वाऽर्कस्थेऽपि वा न कुजदोषः।।७।।

गुरु व शनि बलवान हो, फिर भले ही १,४,७,१० व कोण ५,९ में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सातवें हो तो मंगल का दोष नहीं होता ।।७।।

वाचस्पती नवमपंचकेन्द्रसंस्थे जातांगना भवति पूर्णविभूति युक्ता।
साध्वी, सुपुत्रजननी सुखिनी गुणढ्याः, सप्ताष्टके यदि भवेदशुभ ग्रहोऽपि।।८।।

कन्या की कुण्डली में गुरु यदि १,४,५,७,९,१० भावों में मंगल हो, चाहे वक्री हो, चाहे नीच हो या सूर्य की राशि में स्थित हो, मंगलीक दोष नहीं लगता। अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।।८।।

त्रिषट् एकादशे राहुः, त्रिषडेकावशे शनिः।
विषडकादेश भौमः सर्वदोषविनाशकृत् ।।९।।

३,६,११ वें भावों में राहु, मंगल या शनि में से कोई ग्रह दूसरी कुण्डली में हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।।९।।

चन्द्र, गुरु या बुध से मंगल युति कर रहा हो तो भौम दोष नहीं रहता परन्तु इसमें चन्द्र व शुक्र का बल जरूर देखना चाहिए।।१०।।

द्वितीय भौमदोषस्तु कन्यामिथुनयोर्विना ।।११।।

द्वितीय भाव में बुध राशि (मिथुन व कन्या) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा वृषभ व सिंह लग्न में ही संभव है ।।११।।

चतुर्थे कुजदोषः स्याद्, तुलावृषभयोर्विना ।।१२।।

चतुर्थ भाव में शुक्र राशि (वृषभ-तुला) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा कर्क और कुंभ लग्न में होगा ।।१२।।

अष्टमो भौमदोषस्तु धनुमीनद्वयोर्विना ।।१३।।

अष्टम भाव में गुरु राशि (धनु-मीन) का मंगल दोषकृत 
नहीं है। ऐसा वृष लग्न और सिंह लग्न में होगा ।।१३।।

व्यये तु कुजदोषः स्याद्, कन्यामिथुनयोर्विना ।।१४।।

बारहवें भाव में मंगल का दोष बुध, राशि (मिथुन, कन्या) में नहीं होगा। ऐसा कर्क लग्न और तुला लग्नों में होगा ।।१४।।

१,४,७,८,१२ भावों में मंगल यदि चर राशि मेष, कर्क, मकर का हो तो कुछ दोष नहीं होता ।।१५।।

दंपत्योर्जन्मकाले, व्यय, धन हिबुके, सप्तमे लग्नरन्ने,
लग्नाच्चंद्राच्च शुक्रादपि भवति यदा भूमिपुत्रो द्वयो।।
दम्पत्योः पुत्रप्राप्तिर्भवति धनपतिर्दम्पति दीर्घकालम्,
जीवेतामत्रयोगे न भवति मूर्तिरिति प्राहुरत्रादिमुख्याः ।।१६।।

दम्पत्ति के १,४,७,८,१२ वें स्थानों में मंगल जन्म से व शुक्र लग्न से हो दोनों के ऐसा होने पर वे दीर्घकाल तक जीवित रहकर पुत्र धनादि को प्राप्त करते हैं ।।१६।।
.
भौमेन सदृशो भौमः पापो वा तादृशो भवेत्।
विवाहः : शुभदः प्रोक्ततिश्चरायुः पुत्रपौत्रदः ।।१७।।

मंगल के जैसा ही मंगल व वैसा ही पाप ग्रह (सूर्य, शनि, राहु) के दूसरी कुण्डली में हो तो विवाह करना शुभ है ।।१७।।

कुजोजीवसमायुक्तो, युक्तौ वा कुजचन्द्रमा।
चन्दे केन्द्रगते वापि, तस्य दोषो न मंगली ।।१८।।

गुरु और मंगल की युति हो या मंगल चन्द्र की युति हो या चन्द्र केन्द्रगत हो तो मंगलीक दोष नहीं होता ।।१८।।

न मंगली यस्य भृगुद्वितीये, न मंगली पश्यन्ति च जीवः ।।१९।।

शुक्र दूसरे घर में हो, या गुरु की दृष्टि मंगल पर हो गुरु मंगल के साथ हो, या मंगल राहु से युति हो या केन्द्रगत हो तो मंगली दोष नहीं होता ।।१९।।

सप्तमस्थो यदा भौमो, गुरुणा च निरीक्षितः।
तदातु सवैसौख्यम् मंगलीदोषनाशकृत् ।।२०।।

सातवें भवन में यदि गुरु से देखा जाए तो मंगलीक दोष नष्ट करके सर्व सुख देता है ।।२०।।

केतु का फल मंगलवत् होता है अतः अश्विनी, मघा मूल नक्षत्रों में मंगल हो तो भी मंगलीक दोष नहीं रहता है।

यह उपरोक्त योग यदि कुंडली में हों तो मंगल का अधिक प्रभाव नहीं रहता है अपितु मंगल दोष खत्म हो जाता है और ऐसे में केवल मंगल पूजन या मंगल के उपाय मात्र करने के बाद शादी विवाह ना निर्णय लिया जा सकता है। मंगल दोष निवारण हेतु आप मंगल दोष निवारण कवच पहने जिससे आपको शीघ्र लाभ प्राप्त होंगे,यह कवच बनाने हेतु मंगल शांति यज्ञ में खैर की लकड़ी को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है और अनंतमूल की जड़ को शुभ मुहूर्त में निकालकर उसको प्राण प्रतिष्ठित करना पड़ता है । अनंतमूल की जड़ पर "ॐ क्रां क्रीं कौं सः भौमाय नमः" नमः का मंगल दोष के हिसाब से जाप किया जाता है,यह सब क्रिया करने के बाद ही मंगल दोष निवारण कवच पहेना जाता है जिससे आपको उचित लाभ हो सके । इस कवच का न्योच्छावर राशि 1450/-रुपये है और यह कवच रत्नों से ज्यादा प्रभावशाली है ।

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नक्षत्रानुसार रोगोपचार.

नक्षत्रानुसार रोगोपचार.


ग्रह और नक्षत्रों से होने वाले रोग और उनके उपाय.
वैदिक ज्योतिषी के अनुसार नक्षत्र पंचांग का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है। भारतीय ज्योतिषी में नक्षत्र को चन्द्र महल भी कहा जाता है। लोग ज्योतिषीय विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणियों के लिए नक्षत्र की अवधारणा का उपयोग करते हैं। शास्त्रों में नक्षत्रों की कुल संख्या 27 बताई गयी है। आज हम आपको इसकी जानकारी दे रहे हैं। ज्योतिषानुसार जिस प्रकार ग्रहों के खराब होने पर उनका बुरा प्रभाव देखने को मिलता है उसी प्रकार नक्षत्रों से भी कई रोगों कि गणना शास्त्रों में दी गई है आज हम आपको सभी नक्षत्रों से होने वाले रोग और उन रोगों के उपायों की संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं यदि आपको अपना जन्म नक्षत्र पता है तो आप इस जानकारी को पढ़ें।

(नोट : यह जानकारी जन्म नक्षत्र के आधार पर ही दी गई है)

१. अश्विनी नक्षत्र :
अश्विनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट होते हैं।
उपाय : अश्विनी नक्षत्र के देवता कुमार हैं। उनका पूजन और दान पुण्य, दीन दुखियों की सेवा से लाभ होता है।

२. भरणी नक्षत्र :
भरणी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को शीत के कारण कम्पन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्य क्षमता का अभाव रहता है।
उपाय : भरणी नक्षत्र के देवता यम हैं उनका पूजन और गरीबों की सेवा करें लाभ होगा।

३. कृत्तिका नक्षत्र :
कृतिका नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर, आँखें, मस्तिष्क, चेहरा, गर्दन, कण्ठनली, टाँसिल व निचला जबड़ा आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने। पर आपको इससे संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है।
उपाय : कृत्तीका नक्षत्र के देवता अग्नि हैं अग्नि देव पूजन और नित्य सूर्योपासना करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी आपके लिए शुभ फलदायक होगा।

४. रोहिणी नक्षत्र :
रोहिणी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर या बगल में अत्यधिक दर्द, चित्त में अधीरता जैसे रोग होते हैं।
उपाय : रोहिणी नक्षत्र के देवता ब्रह्मा हैं। ब्रह्म पूजन और चिरचिटे (चिचिढ़ा) की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति और रोग से मुक्ति मिलती है।

५. मृगशिरा नक्षत्र :
मृगशिरा नक्षत्र में पैदा हुए जातकों को ज्यादातर जुकाम, खांसी, नजला, से कष्ट। कफ द्वारा होने वाले सभी रोगों का कारक मृगशिरा नक्षत्र को माना जाता है।
उपाय : मृगशिरा नक्षत्र के देवता चन्द्र हैं। चन्द्र पूजन और पूर्णिमा का व्रत करे लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

६. आर्द्रा नक्षत्र :
आर्द्रा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, आधासीरी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : आर्द्रा नक्षत्र के देवता शिव हैं। भगवान शिव की आराधना करे, सोमवार का व्रत, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधे लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

७. पुनर्वसु नक्षत्र :
पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर, नेत्र और कमर दर्द की अत्यधिक पीड़ा रहती है और इन कष्टों के कारण डाक्टरों के पास अधिक आना जाना रहता है।
उपाय : पुनर्वसु नक्षत्र के देवता हैं आदिती । आदिति देव पूजन और रविवार के दिन जिस रविवार को को पुष्य नक्षत्र हो उस दिन आक के पौधे की जड़ अपनी भुजा में बांधने से लाभ और इन रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

८. पुष्य नक्षत्र :
पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द परेशानी होती है।
उपाय : पुष्य नक्षत्र के देवता ब्रहस्पति हैं। ब्रहस्पति व्रत, ब्रहस्पति पूजन और कुशा की जड़ भुजा में बांधने से तथा पुष्प नक्षत्र में दान पुण्य करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

९. अश्लेषा नक्षत्र :
आश्लेषा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातक का दुर्बल देह प्रायः रोग ग्रस्त बना रहता है। देह में सभी अंग में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदूषण के कारण कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : आश्लेषा नक्षत्र के देवता सर्प हैं। सर्प देव पूजन और नागपंचमी का पूजन, पटोल की जड़ बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति मिलती हैं।

१०. मघा नक्षत्र :
मघा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अर्धसीरी या अर्धांग पीड़ा, भूत पिचाश से बाधा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : मघा नखट्र के देवता पित्रदेव हैं। पितृ पूजन के साथ कुष्ठ रोगी की सेवा, गरीबों को मिष्ठान्न का दान देने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

११. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र :
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को बुखार,खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र के देवता भग देव हैं। भग देव पूजन और पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधने, नवरात्रों में देवी माँ की उपासना करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१२. उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र :
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकडन इत्यादि रोग होते हैं।
उपाय : उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता अर्यमा हैं। अर्यमा देव पूजन और आक की जड़ बाजू में बांधने, ब्राह्मण को समय समय परभोजन कराते रहने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

 १३. हस्त नक्षत्र :
हस्त नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक पेट दर्द, पेट में अफारा, पसीने से अत्यधिक दुर्गन्ध, बदन में वात पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : हस्त नक्षत्र के देवता विश्वकर्मा हैं। विश्वकर्मा पूजन और जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१४. चित्रा नक्षत्र :
चित्रा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को जटिल या विषम रोगों से कष्ट पाता है। रोग का कारण बहुधा समझ पाना कठिन होता है ! फोड़े फुसी सूजन या चोट से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : चित्रा नक्षत्र के देवता ट त्वष्टा देव हैं। त्वष्टा देव पूजन और असंगध की जड़ भुजा में बांधने, तिल चावल जौ से हवन करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१५. स्वाती नक्षत्र :
स्वाती नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को वात पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकडन से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : स्वाति नक्षत्र के देवता वायु देव हैं। वायु देव पूजन और गाय माता की सेवा करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१६. विशाखा नक्षत्र :
विशाखा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सर्वांग पीड़ा से दुःख, फोड़े फिन सी आदि से रोग का बढ़ जाना जैसे रोग होते हैं।
उपाय : विशाखा नक्षत्र के देवता इंद्राग्नि हैं। इंद्राग्नि देव पूजन और गूंजा की जड़ भुजा पर बांधने, सुगन्धित वस्तु से हवन करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१७. अनुराधा नक्षत्र :
अनुराधा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को ताप, जलन, और चमड़ी के अत्यधिक कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : अनुराधा नक्षत्र के देवता मित्र देव हैं। मित्र देव पूजन, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१८. ज्येष्ठा नक्षत्र :
ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को पित्त से रोग बढ़ने से कष्ट, देह में कम्पन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी जैसे रोग होते हैं।
उपाय : ज्येष्ठ नक्षत्र के देवता इंद्रदेव हैं। इंद्रदेव पूजन और दूध का दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१९. मूल नक्षत्र :
मूल नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सन्निपात ज्वर, हाथ पैरों का ठंडा पड़ना, मन्द रक्तचाप , पेट, गले में दर्द, अक्सर रोगग्रस्त रहना जैसे रोग होते हैं।
उपाय : मूल नक्षत्र के देवता दैत्यराज हैं। देव दैत्यराज पूजन और बत्तीस अलग अलग जगह के जल से स्नान के बाद गंगा जी स्नान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२०. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र :
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक देह कम्पन हाथों में जकड़न, हड्डियों में समस्या, सर्वांग में पीड़ा जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता जलदेवता हैं। जलदेवता पूजन, बहते जल में मीठे चावल प्रवाहित करने और मस्तक पर सफ़ेद चन्दन का लेप करने से रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२१. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को संधिवात, गठिया, वात शूल या कटि पीड़ा, असहनीय वेदना इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वेदेवा हैं। विश्वेदेवा पूजन और कपास की जड़ भुजा में बांधे, ब्राह्मणों को समय समय पर मीठा भोजन कराते रहने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२२. श्रवण नक्षत्र :
श्रवण नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अतिसार, दस्त, देह पीड़ा, दाद-खाज-खुजली जैसे चर्म रोग, कुष्ठरोग, पित्त, मवाद बनना, संधि वात, क्षय रोग से पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : श्रवण नक्षत्र के देवता विष्णु हैं। विष्णु पूजन और की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२३. धनिष्ठा नक्षत्र :
धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को मूत्र रोग, खूनी दस्त, पैर में चोट, सूखी खांसी, बलगम, अंग भंग, सूजन, फोड़े या लंगड़ेपन से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : धनिष्ठा नक्षत्र के देवता अष्टवसु हैं। देव अष्टवसु पूजन,भगवान मारुति (हनुमानजी) की आराधना, गुड़ मिश्रित चने का दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

 २४. शतभिषा नक्षत्र :
शतभिषा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को घुटनों व टखनों के बीच का भाग, पैर की नलियों की मांस पेशियाँ, इत्यादि में समस्या जैसे रोग होते हैं।
उपाय : शतभिषा नक्षत्र के देवता वरुण हैं। वरुण देव पूजन, मां दुर्गा की उपासना, कवच-कीलक-अर्गला का पाठ करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२५. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र :
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को उल्टी या वमन, बैचेनी, हृदय रोग, टखने की सूजन, आंतो के रोग से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के देवता अहि देव हैं। अहि देव पूजन, शृंगराज की जड़ भुजा पर बांधे, तिल का दान करने
से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२६. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र :
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना आदि से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के देवता नाग देव हैं। नाग देवता पूजन, पीपल की जड़ भुजा पर बांधने से तथा ब्राह्मणों और गाय माता को मिष्ठान्न दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२७. रेवती नक्षत्र :
रेवती नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को मति भ्रम, उदर विकार, मादक द्रव्य सेवन से उत्पन्न रोग, किडनी के रोग, बहरापन या कान का रोग, पाँव की अस्थि, माधसपेशियों में खिचाव से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : रेवती नक्षत्र के देवता पुषापित्र हैं। देव पुशापित्र पूजन और कुशा की जड़, काले आक की जड़ बाजू पर धारण करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

नक्षत्र दोष निवारण हेतु दिए गए उपाय करें या फिर आप नक्षत्र दोष निवारण हेतु यंत्र को धारण कीजिए जिससे आपको नक्षत्र दोष से राहत मिलेगी । यह यंत्र नक्षत्र से संबंधित जड़ी बूटियों को शुभ मुहूर्त में प्राप्त करके बनाया जाता है । नक्षत्र दोष निवारण यंत्र का न्योच्छावर राशि 1150/-रुपये है,जो व्यक्ति इस यंत्र को प्राप्त करना चाहते है वह व्हाट्सएप पर भी अधिक जानकारी मुझसे ले सकते है ।

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माँ कालिकाय वचन सिद्धी

माँ कालिकाय वचन सिद्धी



माँ काली को माँ के सभी रूपों में सबसे शक्तिशाली स्वरुप माना गया है । भय को दूर करने वाली , बुद्धि देने वाली , शत्रुओं का नाश करने वाली माँ काली की उपासना से सभी कष्ट स्वतः ही दूर होने लगते है । माँ काली की आराधना शीघ्र फल देने वाली है । शास्त्रों में वर्णित है कि कलियुग के समय हनुमान जी , काल भैरव और माँ काली की शक्तियाँ जागृत रूप में अपने भक्तों का उद्धार करने वाली होगी । कुछ मान्यताओं के आधार पर माँ काली की उपासना केवल सन्यासी और तांत्रिक तंत्र सिद्धियाँ प्राप्त करने हेतु करते है । किन्तु यह पूर्णत: सत्य नहीं है , माँ काली की उपासना साधारण व्यक्ति भी अपने कार्य सिद्धि हेतु कर सकते है ।


माँ काली मंत्र साधना में सफल होने से रोगों से मुक्ति मिलती है । शरीर को बल और बुद्धि प्राप्त होती है । हर प्रकार के भय और डर आदि तो माँ काली के स्मरण मात्र से ही दूर होने लगते है । माँ काली साधना से माँ की दस महाविद्याओं में से प्रथम विद्या सिद्ध होती है । माँ काली की साधना करने वाला साधक सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है । माँ काली साधना धन-लक्ष्मी, सुख-शांति व मान-सम्मान आदि सम्पूर्ण सुखों को देने वाली है ।


आज आपको मंत्र साधना के साथ साथ माँ काली जी को वचन में दिया जाएगा,माँ काली जी को वचन में प्राप्त करने हेतु सर्वप्रथम एक लौंग साथ मे एक खाली ताबीज लीजिए और माँ काली जी के मंदिर में जाये,वहा जाकर माँ काली जी से कृपा प्राप्ति हेतु प्रार्थना करे और लौंग को खाली ताबीज में डालकर लाल धागे में पहन लीजिये,यह काम मंगलवार के दिन करना है । ताबीज को शनिवार तक धारण करके रखिये और शनिवार के दिन लाल वस्त्र, 8 निम्बू, एक फूलों का माला, कपूर का तीन-चार टिकिया, लाल कुंकुम और एक मिठाई साथ मे पूजन हेतु रखिये । पूजन का फोटो आपको व्हाट्सएप पर दिया जाएगा जिससे आप जान सकोगे की पूजन कैसे करना है । ताबीज में रखी लौंग का क्या करना है यह भी रहस्य बता दिया जाएगा । पूजन से पूर्व मुझे फोन (मेरा फोन नम्बर +918421522368) कीजिये मैं कुछ मंत्र आपके कान में बोलकर फूँक लगा दूँगा और आपसे एक वचन लूंगा के "आप इस जीवन मे इस साधना से किसीका कभी बुरा नही करेंगे और इस विधान को गोपनीय रखेंगे,किसी भी प्रकार से शक्ति प्रदर्शन भी नही करोगे", साथ मे आपको माँ काली जी को वचन में दिया जाएगा और एक गोपनीय शाबर मंत्र भी दिया जाएगा ।

मंत्र का 108 बार जाप करने से मंत्र सिद्धि हो जाएगी और मंत्र के माध्यम से काम कैसे करना है यह दूसरे दिन बता देंगे परंतु आप अपनी ऊर्जा बढ़ाने हेतु मंत्र का नित्य 108 बार जाप करते रहिए । जितनी ऊर्जा बढ़ेगी उतना ही आपको फायदा होगा,आपके कार्य शीघ्र होने लगेंगे और 108 बार जाप करने में 20 मिनट से ज्यादा समय नही लगेगा । इस साधना हेतु दक्षिणा की न्योच्छावर राशि 2100/-रुपये निर्धारित की गयी है,इससे ज्यादा दक्षिणा स्वीकार नही की जायेगी ।

जो साधक माँ काली जी के वचन प्राप्ति साधना हेतु उस्तुक है वह साधक व्हाट्सएप पर संपर्क करे,योग्य मार्गदर्शन किया जाएगा,सभी प्रकार का मार्गदर्शन निःशुल्क किया जाता है इसलिए चिंता की कोई बात नही है ।




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साबर वशीकरण मंत्र (कामाख्या भैरव उमानंद).

साबर वशीकरण मंत्र (कामाख्या भैरव उमानंद).


बंगाल के जादू के बारे में पूरी दुनिया जानती है। ना सिर्फ जानती है बल्कि इसे आजमाती भी है और इसके प्रयोग से कई तरह के लक्ष्यों को प्राप्त भी करती है, लेकिन बहुत कम लोग हैं जो असली बंगाल के जादू को जानते हैं और इसको सिद्ध करने का तरीका बताते हैं। ऐसा ही एक साधना प्रयोग आज हमारे ब्लॉग पर दे रहे है जो एक वशीकरण का अचूक साधना कहा जाता है ।

बंगाल शुरुआत से ही आध्यात्मिक क्षेत्र में अग्रणी रहा है। बंगाल रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य विवेकानंद की धरती है। अध्यात्म के क्षेत्र में बंगाल दो विचारधाराओं में बंटा है। कृष्णानंद आगमबाशीश जैसे बड़े-बड़े योगी बड़े-बड़े अघोरपंथी यही तपस्या कर संसार मे पूजनीय बने है । बंगाल क्षेत्र के छोटे छोटे गाव में रहने वाले लोग जड़ी बूटियों का अच्छा ज्ञान रखते है,उनके पास मौना मुनि अवश्य होती है,जिसमे मौना काले रंग का होता है और मुनि लाल रंग की होती है । अगर स्त्री को वश करना हो तो मुनि को खाने में दिया जाता है और पुरूष को वश करना हो तो मौना को खाने में दिया जाता है,यह एक प्रकार का बीज होता है परंतु इसको जमीन में बोने से यह उगता नही है । इसी तरह वहा गाव में रहने वाले तांत्रिक भुलनबुटी के बारे में अच्छेसे जानते है,इसमे दो प्रकार होते है,एक सफेद ओर दूसरा काले रंग का भुलनबुटी होता है ।

काले रंग का भुलनबुटी वशीकरण में तेज माना जाता है औऱ सफेद रंग का भुलनबुटी याद्दाश्त भुलाने के काम आता है । इन दोनों प्रकार के भुलनबुटीयो पर वैज्ञानिक आज भी कई वर्षो से शोध कर रहे है के इस बूटी पर पैर रखने से इंसान अपनी याद्दाश्त कैसे खो देता है । वैसे दोनो प्रकार की भुलनबुटीया एक जैसा काम करती है परंतु काले रंग की भुलनबुटी वशीकरण का काम करती है । कहा जाता है कामाख्या मंदिर में दर्शन को जाने वाले भक्तों को नरकासुर नामक राक्षस पीड़ा देता था और उसीको मंदिर में आनेवाले भक्तों से दूर रखने के लिए उस समय के माता के भक्त भुलनबुटी के माध्यम से नरकासुर को माया में फसा देते थे और भक्तों पर अत्याचार करने से पूर्व ही उसकी याद्दाश्त को भुला दिया जाता था,जब भी नरकासुर माता के भक्तों पर अत्याचार करने आता तो उसे यह याद ही नही रहता था के वह यहां क्यो आया है । स्वयं भैरव उमानंद ने काले भुलनबुटी इसलिए धारण किया था कि नरकासुर उनके वश में रहे और उनकी आज्ञा का पालन करे । भैरव उमानंद का कार्य सफल हुआ था परंतु नरकासुर भी एक उच्चकोटि का अघोरी ही था जो माता से विवाह करने के इच्छुक था ।

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में नरक नाम के एक असुर ने कामाख्या देवी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, क्योंकि देवी उनसे विवाह नहीं करना चाहती थी इसलिए उन्होंने उसके सामने एक शर्त रखी। शर्त के अनुसार नरक को एक रात में उस जगह पर घाट, मार्ग व मंदिर आदि सब की स्थापना करनी थी। नरक ने शर्त को पूरा करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को आमंत्रित कर उनका आशीर्वाद ले काम शुरू कर दिया। जब कामाख्या देवी ने नरक द्वारा काम पूरा होता देखा तो उन्होंने मुर्गे से सुबह होने से पूर्व ही बांघ दिलवा दी, जिससे शर्त पूरी न हो सकी और नरक की देवी से विवाह की इच्छा पूरी न हो सकी। इस कारण मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी थीं । 

नरकासुर ने सभी प्रकार के वशीकरण क्रियाओं मुक्ति हेतु पाताल भैरवी से मदत ली और वह सफल रहा और उमानंद भैरव असफल हुए । भक्तों को होनेवाली परेशानी देखकर महर्षि वशिष्ट क्रोधित हुए और उन्होने इस जगह को श्राप दे दिया,जिस कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया । यहां पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को नरकारसुर के नाम से जाना जाता है। इसके आलवा जिस मंदिर में देवी की प्रतिमा स्थापित है उसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। 


आज हम जो साधना दे रहे है,यह एक काले रंग के भुलनबुटी पर संपन्न किया जाने वाला शाबर वशीकरण मंत्र है,जिससे इच्छित व्यक्ति को वश में करने हेतु यह मंत्र साधना असरदार है । यहां मंत्र अपूर्ण दिया जा रहा हैं ताकि उन साधको के लिए मंत्र सुरक्षित रहे जो साधना के क्षेत्र में कुछ प्राप्त करना चाहते है,क्योंकि पूर्ण मंत्र यहां देना मुझे उचित नही लगता है ।


मंत्र-

।। ॐ नमो आदेश गुरु को कामरु देश कामाख्या माई को,जहा बसे उमानंद भैरव दिन रात जागता रहे भक्तों के काम करता रहे अमुक को अमुक का मोह लगाओ वश में कराओ मेरा इतना काम ************** ।।


साधना सिद्धी 21 दिनों का है,इसमे रुद्राक्ष माला और काले रंग का भुलनबुटी से निर्मित ताबीज आवश्यक है,वैसे खाली ताबीज में आप भी अपने घर पर भुलनबुटी को डालकर साधना कर सकते हो ।

साधना प्रयोग-गले मे ताबीज पहनकर रुद्राक्ष माला से इच्छित व्यक्ति के फोटो को देखते हुए 108 बार मंत्र का जाप तीन दिनों तक करना है और तीसरे दिन जाप समाप्त होते ही एक अनार का बलि देना है । यह क्रिया संपन्न करने से 24 घंटो में इच्छित व्यक्ति का वशीकरण करना सम्भव है । जीवन मे साधना एक बार ही करना है और इसका उपयोग जीवन मे कभी भी कर सकते है । साधना से संबंधित अन्य बाते आप फोन करके पूछ सकते है या फिर व्हाट्सएप पर भी पूछ सकते हो,नम्बर  +91-8421522368 ।


साधना सामग्री न्योच्छावर राशि 3500/-रुपये.



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पूर्व जन्मकृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात

पूर्व जन्मकृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात



शमन का सीधा अर्थ है – समाप्त करना और समाप्त करना है उन दोषों को, जिन दोषों ने जीवन को जीर्ण शीर्ण कर दिया है। इस जीवन के अज्ञान का शमन हो अथवा पूर्व जन्म के दोषों का शमन हो, इसका एक मात्र उपाय है नाथ संप्रदाय से शमन दीक्षा प्राप्त करना। शमन दीक्षा एक ऐसी चिन्गारी है जो आपके जीवन में एक बार प्रज्वलित हो जाने पर अग्निशिखा बन पूरे देह मानस में व्याप्त हो जाती है, जब एक बार शमन की यह क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो पूरे दोषों को समाप्त कर देती है, इसके प्रभाव से इस जन्म के तो क्या पूर्व जन्म के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। आप स्वयं अपने जीवन को नये रूप से स्पष्टतः देख सकते हैं, शमन दीक्षा जीवन की नयी शुरुआत है यहा तक तो यह भी कह सकते है कि आध्यत्मिक जीवन मे नया जन्म है ।

साधक तथा शिष्य नाथ सम्प्रदाय में इसी उद्देश्य से आते हैं, कि वे अपने-आप को पूर्ण समर्पित कर नाथ सम्प्रदाय के दिव्य ज्ञान एवं प्रभाव से अपने भीतर के विकारों का, अपने इस जन्म और पूर्वजन्म के दोषों का नाश कर दें। साधक तथा शिष्य अपना मार्ग स्वयं नहीं पहचान सकता, वह केवल आध्यात्मिक गुरु द्वारा बताये गये मार्ग पर चलना जानता है और जब वह सही मार्ग पर चलता है, तो उसे सिद्धि व सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

प्रत्येक व्यक्ति ऐसा ही अनुभव कर रहा है कि इस संसार में उससे अधिक दुःखी, उससे अधिक तनावग्रस्त और उससे ज्यादा पीड़ित कोई अन्य है ही नहीं। ऐसा क्यों हो रहा है और क्यों सारी भौतिक सुविधाओं और उन्नति के बावजूद भी वह अपने-आप को असहाय और कटा हुआ अनुभव करता है, क्यों सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर व्यक्ति अपने अन्दर घुटन अनुभव कर रहा है, क्यों नहीं वह इस प्रकार से चैतन्य, आनन्दित और सुखी बन पा रहा है, जैसा बनना मानव जीवन का अर्थ कहा गया है।

इसका उत्तर व्यक्ति को भौतिक रूप से शायद नहीं मिल सकेगा, क्योंकि यह व्यक्ति के अन्तःपक्ष से जुड़ी समस्या है जिसका समाधान अध्यात्म से ही संभव है, और अध्यात्म में भी थोथी बातों व प्रवचनों से नहीं वरन् वास्तविक और यथार्थ रूप से।

वास्तव में प्रत्येक चिन्तनशील व्यक्ति इस बिन्दु पर आता ही है जब वह सोचता है या सोचने को बाध्य हो जाता है कि मैंने तो अपने जीवन में इतना परिश्रम किया, इतनी बुद्धि लगायी, सफलता के प्रत्येक फॉर्मूलों को अपनाया और अपनी क्षमता से कोई कसर तो नहीं छोड़ी, फिर भी मेरा जीवन बिखरा-बिखरा क्यों है, क्यों नहीं परिवार के साथ मेरा सामंजस्य बनता है, क्यों मुझे इतना मानसिक तनाव बना रहता है? इस प्रकार की अनेक बातों का हल प्राप्त करने के लिए दैव इच्छा पर ही अन्त नहीं कर देना चाहिए। जीवन इतनी सस्ती वस्तु नहीं है, जिसे हम किसी ‘किन्तु-परन्तु’ पर छोड़ दें।

गन्दगी पर कालीन डाल देने से दुर्गन्ध नहीं छिपती, इसी प्रकार अपने मानसिक तनाव, न्यूनताओं और अभावों पर ‘हरि इच्छा – प्रभु इच्छा’ का सुनहरा कालीन बिछा देने से सुगन्ध के झोंके प्रारम्भ नहीं हो जायेंगे, उल्टे जहां से दुर्गन्ध आ रही है, वह ढंकने पर और भी घनी हो जायेगी। इसका हल मिलेगा एक आध्यात्मिक यात्रा में और इस यात्रा का मार्ग है दीक्षाओं के स्वरूप में।

कदाचित यह बात कटु लग सकती है किन्तु व्यक्ति के जीवन के अधिकांश दुःखों का कारण उसके पूर्व जन्मकृत दोष ही होते हैं, जिनका शमन पूर्णरूप से नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा द्वारा हो सकता है । जब तक जीवन मे पापों का मोचन और दोषों का शमन पूर्णरूप से नहीं हो जाता तब तक साधक में पूर्णता नहीं आ सकती।

पापमोचन का तात्पर्य है शरीर में स्थित विकारों का नाश। निवृत्ति तथा विकार का तात्पर्य है जीवन में जो दोष हैं, चाहे वे इस जीवन के हों अथवा पूर्व जीवन के, क्योंकि पूर्वजन्म में किये गये कृत्यों का प्रभाव भी इस जीवन पर पड़ता ही है ।

जो गृहस्थ साधक पूर्व जन्म कृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात प्राप्त करना चाहते है उनको इस क्रिया से लाभान्वित किया जाएगा,यह क्रिया अपने आप मे एक दुर्लभ क्रिया है,इस क्रिया के माध्यम से आपके इहजन्म दोष एवं पूर्व जन्म दोष का शमन अवश्य ही होगा । इस क्रिया को संपन्न करने के बाद धीरे धीरे आप महसूस करेंगे कि आपके जीवन मे कई सारे बदलाव आरहे है,जैसे किसी भी कार्य मे आनेवाली बाधाएं कम हो जाएगी,शादी में आनेवाली अडचने दूर हो जाएगी । धन-धान्य-सुख-संपदा-ऐश्वर्य आपको प्राप्त होता रहेगा, दुखो का नाश होता रहेगा और सुख की प्राप्ति होती रहेगी,प्रेम प्रकरण में भी आपको सफलता मिलेगी और रिश्तों में सुधार आएगा । अध्यात्म से जुड़े हुये साधको को साधना में सफलता और सिद्धियां प्राप्त होती रहेंगी,मंत्र उच्चारण दोष में भी आपको नुकसान नही उठाना पड़ेगा ।



पूर्व जन्म कृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात कैसे प्राप्त करना है इसके बारे में अधिक जानकारी मैंने अपने youtube channel पर दियी है और यह क्रिया संपन्न कर आप जीवन मे सर्वत्र लाभ प्राप्त कर सकते है । यहा पर भी youtube channel का लिंक दे रहा हु अगर आपको यहा से लिंक को coppy-paste करने में समस्या आ रही हो तो इसी ब्लॉग पर youtube channel का पेज पर direct हमारे youtube channel पर जाने का option दिया हुआ है ।


https://youtu.be/_V34Kd3Adjg


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चैतन्य मोहिंनी साधना

चैतन्य मोहिंनी साधना


समय से बड़ा कोई नही है और समय रहते कोई काम करो तो वह भगवान का प्रिय ही माना जायेगा । आज का समय कुछ अलग है और आज से 30 वर्ष पूर्व का समय कुछ अलग ही था,पहिले भी लोग सुखी ही थे शायद आज से ज्यादा ही खुश थे । महिलाओं का मान-सम्मान और पति के आज्ञा का पालन करना यह 30 वर्ष पूर्व होता ही था परंतु आज पति पत्नी को मारता है तो कही पत्नी पति को मार रही है और बहोत सारे किस्सों में तो जो बेगुनाह है वही पिट रहा है । आज के समय मे डर नाम की चीज खत्म हो गयी है,पहिले लोग भगवान से डरते थे अब तो भगवान को डराते है । किसी भी महिला पर बुरी नजर डालना पाप माना जाता है इसमे भी एक भगवान का डर था परन्तु आज बलात्कार बढ़ रहे है और भगवान का डर समाप्त हो रहा है । जैसे अगर चींटी भी मारो तो पाप लगेगा और भगवान इस पाप की अवश्य सजा देंगे, याद कीजिए कुछ शायद आप भी एक समय ऐसा होगा जब चींटी मारने से भी डरते होंगे । अब तो खून भी कर देंगे किसीका तो यही बोलेंगे 5-6 महीनों में जैल से छूट जाएगा और बाइज्जत बलि भी हो जाएगा ।


इतना सब तो नही लिखना था परंतु आपको कुछ याद दिलाने के लिए लिखा है ताकि आप जब भी चैतन्य मोहिंनी मंत्र साधना करे तो किसी भी परस्त्री/परपुरुष पर इसका प्रयोग करने से बचे और दिमाग में वह डर रहे कि अगर किसीका बुरा करोंगे तो भगवान इसकी सजा अवश्य देंगे । चैतन्य मोहिंनी मंत्र साधना नाथ संप्रदाय में एक दुर्लभ साधना मानी जाती है,चैतन्य मोहिंनी मंत्र से आप जिस भी चीज पर 21 बार मंत्र बोलकर किसी को भी वह खाने/पीने का वस्तु देंगे तो उसके उसको ग्रहन करने के बाद मंत्र 3 घंटे में अपना काम शुरू कर देता है और मंत्र का पूर्ण परिणाम 24 घंटो में दिखने मिलता है । मान लो आप किसी को मिठाई नमक सब्जी रोटी लस्सी दूध शक्कर में अगर 21 बार उसका नाम मंत्र में पढ़कर खिला देते हो तो वह हो गया समझिए आपके पूर्ण वश में और आप को वह व्यक्ति पूर्ण मान-सम्मान के साथ आपकी आज्ञा का पालन भी करेगा ।


चैतन्य मोहिंनी मंत्र यह मराठी भाषा मे है और यह एक दुर्लभ शाबर मंत्र है,इसको तो अभी तक गोपनीय ही रखा हुआ है और यह मंत्र दुनिया के किसी भी किताब ने नही है, यह मंत्र मुझे एक नाथ सम्प्रदाय के विद्वान व्यक्ति से प्राप्त हुआ और मैने इससे बहोत सारे लोगो के काम भी किये है । जैसे कोई व्यक्ति बहोत शराब पीता हो और नशे में घर का सत्यानाश करने पर तुला हो तो उस समय मैने उस व्यक्ति को उसके पत्नी के वश में किया है ताकि वह व्यक्ति अपने पत्नी की बात माने, शराब पीना छोड़ दे और घर मे सुख शांति से जीवन जिये । कभी कभी ऐसे भी लोग मिले की पत्नी गलत रास्ते जा रही है और पति इन सब बातों के वजेसे आत्महत्या पर उतर आया है,तो ऐसे परिस्थितियों में पत्नी को पति के वश में कर दिया और परिणाम यही मिला कि पत्नी ने गलत रास्ते पर छोड़ना बंद कर दिया । सास-बहू का युद्ध जो एक पूर्ण जीवन को खराब कर सकता है,तलाक़ करवा सकता है,आत्महत्या करवा सकता है तो उस युद्ध को रोकने के लिए भी चैतन्य मोहिंनी मंत्र से मदत मिली है । कुछ जगह दो भाई या बहन-भाई के रिश्तों में प्रॉपर्टी के वजेसे लड़ाई चल रही थी तो वहा पर भी सबको अपना-अपना हक जो भी था वह मिल गया ।


माँ भगवती जी के कृपा से बहोत सारे काम समय पर संभव हुए इसलिए बहोत सारे परिवार आज खुशी से जीवन की यात्रा पूर्ण करने में लगे हुए है । चैतन्य मोहिंनी साधना की एक खासियत है के यह साधना सिर्फ अच्छे कार्य करती है,जब आप बुरा काम करने की इच्छा मन मे रखेंगे तो आपके सिद्धी का शक्ति ऑटोमैटिकली कम होने लगेगा और सिद्धी हमेशा के लिये समाप्त भी हो जाएगी । मंत्र सिद्धी से पूर्व माता मोहिंनी को तीन वचन स्वयं साधक को देने होते है जैसे-

१-इस मंत्र साधना के माध्यम से मै किसी भी अमीर व्यक्ति को अपना दास बनाकर नही ठगूंगा ।

२-किसी भी महिला/पुरूष से अनैतिक संबंध बनाने के लिये इस विद्या का कभी भी इस्तेमाल नही करूंगा ।

३-कभी भी विद्या सीखने के लालच में अपने गुरु पर इसका प्रयोग नही करूंगा ।


यह तीन वचन देते ही माता मोहिंनी खुश हो जाती है और 21 दिनों तक 108 बार मंत्र जाप करने से चैतन्य मोहिंनी विद्या सिद्ध हो जाती है । इस साधना को संपन्न करने हेतु चैतन्य मोहिंनी सिद्धी यंत्र और चैतन्य मोहिंनी सिद्धी माला की आवश्यकता होती है । साधना समाप्ति के बाद चैतन्य मोहिंनी सिद्धी यंत्र को आप गले मे धारण करे और माला को अन्य मंत्र जाप हेतु सुरक्षित रखे । इस यंत्र को अगर आप खोलकर देखो तो उसमे आपको दुर्लभ पाच जड़ीबूटिया देखने मिलेगी जो आज के समय मे प्राप्त करना भी कठिन है,कुछ खास पाच जड़ीबूटियों को जागृत करके चैतन्य मोहिंनी सिद्धी यंत्र का निर्माण किया जाता है,इसलिए यह यंत्र आपको साधना में पूर्ण सिद्धी हेतु आवश्यक और लाभप्रद है । यह साधना कोई भी व्यक्ति किसी भी समय-किसी भी दिन से शुद्ध पवित्र अवस्था मे प्रारंभ कर सकता है,कलयुग में शाबर मंत्र ही लाभप्रद और शीघ्र परिणाम दिखाने में महत्वपूर्ण है । साधना सामग्री का न्योच्छावर राशि आपको संपर्क करने पर बता दिया जाएगा ।

इस साधना में सफलता प्राप्त करने हेतु आपको मैं पूर्ण मार्गदर्शन करने का वचन देता हू और मुझे यकीन है के आप अवश्य ही इस साधना में सफलता प्राप्त करेंगे ।

जिन्हें सामग्री प्राप्त करनी है वह साधक +91-8421522368 इस नम्बर पर कॉल कर सकते हो और यही मेरी व्हाट्सएप नम्बर है तो आप व्हाट्सएप पर भी मेसेज कर सकते हो ।



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सर्व देवी शक्ति सवारी मंत्र साधना.

सर्व देवी शक्ति सवारी मंत्र साधना.


आप लोगो ने शरीर मे देवी आना यह बहोत बार देखा होगा,किसी भी भगत के शरीर मे जब देवी आती है तो उस भगत को बहोत तकलीफ सहनी पड़ती है । भगत के शरीर मे सवारी आने से वहा पर दर्शन करने वाले भक्तों का हमेशा कल्याण ही होता है । कुछ जगह पर लोग शरीर मे देवी आने का ढोंग भी रचते है और इस प्रकार से नाटक करते है कि सामान्य भक्त उनके बातों में फस जाते है । जिस स्थान पर माता की सच्ची सवारी आती हो वहा पर किसी भी भक्त को दर्शन करने मात्र से ही परेशानी से छुटकारा मिल जाता है और मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है । आज के समय मे तो 90% पाखंड सवारी के नाम पर चल रहा है जिसके वजेसे आज़कल हर कोई माता की आरती में या फिर भजन में घूमने लगता है और सवारी आने का नाटक करता है । आप सर्वप्रथम वस्तुस्थिती को समझिए जैसे किसी भगत के शरीर मे सवारी आना कोई आसान क्रिया नही है,इसके लिए भगत का आचरण और वाणी भी शुद्ध होना चाहिए । अगर कोई भगत सवारी आने के बाद गालियां देता हो तो सीधे उसके जोर से बाल खिंचकर उसको घुमाओ तो वो चिल्लाने लगेगा या फिर ज्यादा गालियां देने लगेगा,अब यहा आपको समज जाना चाहिए कि यह पाखंड कर रहा है । जिन्हें सच्ची सवारी आती है उनके शरीर को तकलीफ दी जाए तो उस भगत के शरीर को सवारी के वक्त तकलीफ महेसुस नही होती है परंतु सवारी जाने के बाद बेचारे को बहोत तकलीफ होती है । सीधे भाषा मे कहा जाए तो सवारी भगत के शरीर मे शक्ति का चैतन्य होना या फिर माता के शक्ति का आशिर्वाद ही बोल सकते है ।



मैंने पिछले बार कालभैरव सवारी के बारे में लिखा था और उस साधना के माध्यम से बहोत सारे साधक लाभान्वित हुए है,इसलिए इस बार एक ऐसा शाबर मंत्र देने के इच्छुक हु जिससे किसी भी माता/देवी की सवारी को शरीर मे बुला सकते है । पिछले बार मैंने बहोत भरोसा करके मंत्र को पूर्णता स्पष्ट किया था जिसके वजेसे से फेसबुक और यु ट्यूब के धूर्त तांत्रिकों ने उसको चुराकर अपने वीडियो बनाये और किसीने पोस्ट बनाकर डाल दिया । इस बार मंत्र को पूर्णता स्पष्ट नही कर रहा हु इसलिए इस बार अधूरा मंत्र इस आर्टिकल में आपको पढ़ने मिलेगा,अब तक मैंने कुछ मंत्र के शब्दों को गोपनीय रखा था और ये भी कहा था कि गोपनीय शब्द व्हाट्सएप पर बताया जाएगा परंतु इस बार " सर्व देवी शक्ति सवारी शाबर मंत्र " को सिर्फ साधना सामग्री के साथ लीखकर भेज दिया जाएगा ताकि इस दुर्लभ गोपनीय मंत्र की गोपनीयता हमेशा बनी रहे । गोपनीय मंत्र के बारे में यहा पर स्पष्टीकरण देने का एक ही कारण है कि यह दुर्लभ गोपनीय विद्याए कहि लुप्त ना हो जाये,आज के समय मे मंत्रो को गोपनीय रखने के चक्कर मे बहोत सारे मंत्र लुप्त हो चुके है । हर समय गोपनीयता के कारण अगर मंत्र लुप्त होते रहे तो आनेवाले समय मे मंत्रो का ज्ञान समाप्त हो सकता है,शाबर मंत्र अपने आप मे सिद्ध और चैतन्य होते है इसलिए इन मंत्र से हर प्रकार के कार्य संभव है ।



यहा पर पूर्ण विधि समझा रहा हु,इस साधना हेतु देवी शक्ति सवारी पत्थर और कृपा प्राप्ति यंत्र (ताबीज रूप में) आवश्यक है । यह पत्थर माता के शक्तिपीठों में एक ऐसा शक्तिपीठ है जहा उनके कुंड में प्राप्त होता है,यह दिव्य शक्तिपीठ नासिक (महाराष्ट्र) के पास है,माँ सप्तश्रृंगी जी का यह शक्तिपीठ बहोत सारे चमत्कार और रहस्यो से अद्भुत है । इस शक्तिपीठ के पास दादा गुरु मच्छीद्रनाथ जी का तपस्या स्थल है,दादा गुरु मच्छीद्रनाथजी गुरु गोरखनाथजी के गुरु है और सर्वप्रथम उन्होंने अपने गुरु दत्तात्रेय जी से दीक्षा प्राप्त करने के बाद इस शक्तिपीठ पर 108 कुंडों के जल से स्नान करके अपने जीवन मे तपस्या आरंभ की थी और इसी स्थान पर उन्होंने सर्वप्रथम शाबर मंत्रो की रचना की थी । यह देवी शक्ति सवारी पत्थर इस स्थान पर कुंड में कभी कभी प्राप्त हो जाता है और इसे प्राप्त करने के लिये वहा के निवासी लोगो से जान पहचान होना भी जरूरी है । इस बार जब मैं वहा गया था तो मुझे 12 पत्थर प्राप्त हुए,पिछले बार गया था तो सिर्फ एक ही पत्थर मिला था । यह देवी शक्ति सवारी पत्थर बड़ी कठिनाई से प्राप्त होते है और इस पत्थर पर की जाने वाली शाबर मंत्र साधनाये भी फलित होती है । साथ मे सप्तश्रृंगी माता के कुंकुम से बना यंत्र जो कृपा प्राप्ति यंत्र है,वह भी आवश्यक है क्योके बिना माँ भगवती के कृपा प्राप्ति के यह साधना तो असंभव ही है । यह दो साधना सामग्री मुख्य है और बाकी सामग्री आप कही से भी प्राप्त कर सकते है जैसे चार मिट्टी के दीपक, चार गुलाब के पुष्प,50 ग्राम लाल कुमकुम,तिल का तेल,मिठाई ।


साधना विधि-

एक फोटो यहा दे रहा हु और इसी प्रकार से आपको लकड़ी के बाजोट पर यह आकृति कुमकुम से बनानी है । वैसे मैंने यह आकृति टाइल्स पर बनायी है परंतु आप लोग बाजोट पर बनाये,जहा पर चार नीले रंग के गोल है वहा पर मिट्टी के दीपक रखने है और दिए का मुख पत्थर के तरफ हो । जैसा आकृति में दिख रहा है वैसे ही देवी शक्ति सवारी पत्थर और कृपा प्राप्ति यंत्र रखना है,जहा पीले रंग के पुष्प दिख रहे है वहा एक एक गुलाब का पुष्प रोज नया रखना है । साधना नवरात्रि या फिर शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू कर सकते है,मंत्र जाप बिना माला के एक घंटे तक करना है,धूपबत्ती आपको जो भी पसंद हो वही लगाए,रोज मिठाई का भोग भी रखा करे । यह साधना कम से कम 21 दिनों तक करना आवश्यक है,साधना में शरीर का तापमान बढना, सरदर्द होना, शरीर मे भारीपन जैसे अनुभव हो सकते है इसलिए डरने की आवश्यकता नही है । साधनात्मक अनुभव सिर्फ मुझे बता सकते हो अन्य किसीको बताना नही है,साधना में मुख उत्तर दिशा के तरफ होना चाहिए, आसन और वस्त्र लाल रंग के हो और बिना स्नान किये साधना करना वर्जित है,यह साधना रात्रिकालीन है ।






मंत्र-
।। ॐ नमो आदेश गुरु को,बंगाल से आयी सवारी शेरावाली माता की, आगे चले हनुमान पीछे चले भैरव, साथ मे आये अमुक माता मेरे शरीर को सवारों,सवारी के रूप में रुक जाओ भगत का वाचा सिध्द करो ना करो तो.......गुरु का मंत्र सच्चा चले छू वाचापुरी ।।



यहाँ मंत्र अधूरा दिया जा रहा है,मंत्र के मुख्य शब्द गोपनीय रखे है ताकि चोरों को चोरी करने का मौका ना मिले परंतु साधना सामग्री के साथ मंत्र लीखकर भेज दिया जाएगा । अमुक के जगह आप जिस देवी शक्ति का सवारी प्राप्त करना चाहते हो उन्हीका नाम लेना है,इस मंत्र से किसी भी देवी शक्ति की सवारी प्राप्त की जाती है । इस विधान से सच्ची सवारी आपको साधनात्मक फल स्वरूप प्राप्त होगी । सवारी प्राप्त करने के दो ही मार्ग है जैसे भगत खुश होकर भक्त को सवारी दे सकता है या फिर माँ स्वयं खुश होकर भक्त को भगत बना लेती है और दूसरा मार्ग मंत्र साधना से ही सवारी प्राप्त कर सकते है ।



साधना सामग्री की न्योच्छावर राशी 2150/-रुपये है और साधना सामग्री प्राप्त करने हेतू +918421522368 इस नंबर पर व्हाट्सएप करे या फिर सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक फ़ोन कर सकते हो ।


सभी प्रकार के प्रश्नों के जवाब हेतु आपका निशुल्क मार्गदर्शन किया जाएगा और आप सभी सवाल एक साथ ही पूछो यही आपसे विनती है ।


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मधुमेह का आयुर्वेदिक इलाज .(Ayurvedic treatment of diabetes.)

मधुमेह का आयुर्वेदिक इलाज .(Ayurvedic treatment of diabetes.)


मधुमेह आज सिर्फ भारत ही नहीं, पूरे विश्व में अपने पैर पसारने लगा है। भारत को तो विश्व की डायबिटीक कैपिटल कहकर पुकारा जाता है। इस प्रकार भारत में मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या काफी अधिक है। 

आजकल के इस भागदौड़ भरे युग में अनियमित जीवनशैली के चलते जो बीमारी सर्वाधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है वह है मधुमेह। मधुमेह को धीमी मौत भी कहा जाता है। यह ऐसी बीमारी है जो एक बार किसी के शरीर को पकड़ ले तो उसे फिर जीवन भर छोड़ती नहीं। इस बीमारी का जो सबसे बुरा पक्ष है वह यह है कि यह शरीर में अन्य कई बीमारियों को भी निमंत्रण देती है। मधुमेह रोगियों को आंखों में दिक्कत, किडनी और लीवर की बीमारी और पैरों में दिक्कत होना आम है। पहले यह बीमारी चालीस की उम्र के बाद ही होती थी लेकिन आजकल बच्चों में भी इसका मिलना चिंता का एक बड़ा कारण हो गया है। 

जब हमारे शरीर के पैंक्रियाज में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता है तो खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इस स्थिति को डायबिटीज कहा जाता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जोकि पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। इसका कार्य शरीर के अंदर भोजन को एनर्जी में बदलने का होता है। यही वह हार्मोन होता है जो हमारे शरीर में शुगर की मात्रा को कंट्रोल करता है। मधुमेह हो जाने पर शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

डायबिटीज के मरीजों में सबसे ज्यादा मौत हार्ट अटैक या स्ट्रोक से होती है। जो व्यक्ति डायबिटीज से ग्रस्त होते हैं उनमें हार्ट अटैक का खतरा आम व्यक्ति से पचास गुना ज्यादा बढ़ जाता है। शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से हार्मोनल बदलाव होता है और कोशिशएं क्षतिग्रस्त होती हैं जिससे खून की नलिकाएं और नसें दोनों प्रभावित होती हैं। इससे धमनी में रुकावट आ सकती है या हार्ट अटैक हो सकता है। स्ट्रोक का खतरा भी मधुमेह रोगी को बढ़ जाता है। डायबिटीज का लंबे समय तक इलाज न करने पर यह आंखों की रेटिना को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे व्यक्ति हमेशा के लिए अंधा भी हो सकता है।

आयुर्वेद में मधुमेह जैसे बीमारी का सटीक इलाज दिया हुआ है,कुछ ऐसी जड़ीबूटीया है जिसके सेवन से मधुमेह को हमेशा के लिये ठीक किया जा सकता है । 32 प्रकार की जड़ीबूटियों के मिश्रण से मधुमेह की एक शक्तिशाली दवा बनायी जाती है जिसका असर 7-8 दिनों में देखने मिलता है,आजतक मैंने जिन मरीजो को भी दवाई दी है उनसे एक बात तो हमेशा बोलता हू "अगर 15 दिनों में आपको दवा से फर्क महसूस नहीं हुआ तो मुझे मेरी दवाई वापिस भेज दो और आपका दवा के लिए किया पुरा धनराशि मुझसे वापिस लीजिए" ।

यह दवा अगर तीन महीने तक सेवन की जाए तो मधुमेह नामक बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है । चाहे आपका मधुमेह कितना ही क्यो ना तकलीफ देता हो,इस दवा से मधुमेह कंट्रोल में आजाता है,मैं यह दवा 100% गारंटी के साथ देता हू और 15 दिनों में आपको असर ना दिखे तो 100% पुरा दवाई का खर्च वापिस दिया जाएगा । दवाई का असर तो पहिले ही दिन से शुरू हो जाता है और 7-8 दिनों में आपको फायदे दिखाई देते है,15 दिनों तक आप रोजाना दवा लेने के बाद स्वयं ही दवा की प्रशंसा करने लगेंगे । यह दवा 30 दिनों के लिए दी जाती है क्योके कुछ लोगो का मधुमेह 30 दिनों में ही ठीक हो गया और कुछ लोगो को ज्यादा से ज्यादा 90 दिनों तक का समय लगा,कम से कम 30 दिन और ज्यादा से ज्यादा 90 दिनों तक दवाई लेने से मधुमेह पूर्णता ठीक हो जाता है,ऐसा आजतक का हमारा अनुभव रहा है ।

जो मधुमेह के मरीज यह 32 प्रकार की जड़ीबूटियों से निर्मित दवाई का सेवन करके स्वास्थ्य होना चाहते है,उन्हें मुझे व्हाट्सएप नंबर पर आपकी मेडिकल रिपोर्ट भेजनी है,जिसमे यह पता चले कि अभी आपका मधुमेह कितना है,आपकी रिपोर्ट देखकर ही सही मात्रा में जड़ीबूटियों का मिश्रण करके दवाई बनाई जाएगी क्योके इन जड़ीबूटियों में मात्राओं को कम ज्यादा करना पड़ता है । इस दवाई के 30 दिन का खर्च 3000/-रुपये है और कूरियर चार्जेस 80- 100/-रुपये तक है,एक दिन के दवा का खर्च ही 100 रुपया आता है और 30 दिनों तक दवाई को लेने के बाद मैं गारण्टी के साथ बोलता हू आप स्वयं पूर्ण स्वास्थ लाभ प्राप्त होने तक अवश्य ही दवाई का सेवन करेंगे । आपको 15 दिनों के बाद फिर से एक बार अपना रिपोर्ट भेजना है और उसमें आपको लाभ ना दिखाई दे तो आपको आपकी धनराशि वापिस कर देंगे,यह मैं आपको वचन देता हू ।

इस दवाई को सेवन करने से लाभ 100% होगा और साथ मे मैं आपको कुछ आवश्यक बाते भी बता दूँगा जिससे आपको अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे । दवाई के सेवन काल मे कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत फोन करे, वैसे मैंने प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति (नेचुरोपैथी) में भी पढ़ाई की है और उसका सर्टिफिकेट भी प्राप्त किया है,इस लिए इस दवाई के सेवन हेतु आपको डरने की आवश्यकता नही है,इसमे मेरा अनुभव भी 10 वर्ष से ज्यादा का रहा है । नेचुरोपैथी में रोग को ठीक करने के साथ ही उसे शरीर से खत्म करने पर ध्यान दिया जाता है। 


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कुण्डली में अशुभ योग और उनका निवारण.

कुण्डली में अशुभ योग और उनका निवारण.


1).चांडाल योग-

गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक बुजुर्गों का
एवम् गुरुजनों का निरादर करता है ,मोफट होता है,तथा अभद्र भाषाका प्रयोग करता है । यह जातक पेट और श्वास के रोगों से पीड़ित हो सकता है और इनका जीवन कष्टदायक होता है। वह निराश व हताश रहता है उसकी प्रकृति आत्मघाती होती है ।


2).सूर्य ग्रहण योग-

सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो जातक कोहड्डियों की कमजोरी, नेत्र रोग, ह्रदय रोग होने की संभावना होती है ,एवम् पिताका सुख कम होता है,आत्मविश्वास की कमी होती है इसके वजेसे सफलताये नही मिलती है । ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना तथा इसी प्रकार यह माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


3).चंद्र ग्रहण योग-

चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक को मानसिक पीड़ा एवं माता को हानई पोहोंचती है,जीवन मे सुख को कमी और दुःख ज्यादा होते है । चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु की स्थिति अथवा दृष्टि से प्रभाव पड़ता है तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाता है जो जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ट दे सकता है।


4).श्रापित योग-

शनि के साथ राहु हो तो यह योग होता है,इस योग से जीवन मे नर्क यातनाएं भुगतनी पड़ती है,ऐसा जातक आत्महत्या के विचार ज्यादा करता है । शाप का सामान्य अर्थ शुभ फलों का नष्ट होना माना जाता है । जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है उसे इसी प्रकार का फल मिलता है यानी उनकी कुण्डली में जितने भी शुभ योग होते हैं वे प्रभावहीन हो जाते हैं । इस स्थिति में व्यक्ति को कठिन चुनौतियों एवं मुश्किल हालातों का सामना करना होता है ।


5).पितृदोष-

यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है । इसके प्रभाव से किसी भी कार्य को पूर्ण करने की कोशिशें नाकाम हो जाती है । पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।


6).नागदोष-

यदि जातक के पाचवे भाव में राहु विराजमान है तो जातक पितृदोष के साथ-साथ नागदोष से भी पीड़ित होता है,ऐसा जातक जीवन मे हमेशा असंतुष्ट होता है और संतान प्राप्ति में इसे कष्ट उठाने पड़ते है । यह दोष होने पर जातक किसी पुराने या यौन संचारित रोग से ग्रस्‍त रहता है। कुंडली में नागदोष हो तो जातक को अपने प्रयासों में सफलता प्राप्‍त नहीं होती। नाग दोष का अत्‍यंत भयंकर प्रभाव है कि इसके कारण महिलाओं को संतान उत्‍पत्ति में अत्‍यधिक परेशानी आती है। कुंडली में नागदोष होने से व्‍यक्‍ति की गंभीर दुर्घटना होने की संभावना रहती है। इन्‍हें जल्‍दी-जल्‍दी अस्‍पताल के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं एवं इनकी आकस्‍मिक मृत्‍यु भी संभव है । नागदोष से प्रभावित जातकों को उच्‍च रक्‍तचाप और त्‍वचा रोग की समस्‍या रहती है।


7).ज्वलन योग-

सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो जातक ज्वलन योग (अंगारक योग) से पीड़ित होता है,हमेशा किसी न किसी चीज की कमी और स्वास्थ्य में तकलीफे रहती है । जिस स्थान मे हो उसी स्थान के खराब फल देता है ।


8).अंगारक योग-

मंगल के साथ राहु या केतु वीराजमान हो तो जातक अंगारक योग से पीड़ित होता है,ऐसा जातक सारी जिंदगी अंगारों पर चलने वाली जैसी तकलीफ को सहता है । इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं।


9).प्रेत दोष-

शनि के साथ बुध होने से यह दोष उत्पन्न होता गई,प्रेत बाधा का अ‍र्थ मनुष्‍य के शरीर पर किसी भूत-प्रेत का साया पड़ जाना है। यह योग न केवल जातक को परेशान करता है अपितु उसके पूरे परिवार को भयभीत कर देता है। प्रेत बाधा में अदृश्‍य शक्‍तियां मनुष्‍य के शरीर पर कब्‍जा कर लेती हैं। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार कुंडली में प्रेत बाधा योग बनने पर जातक को भूत-प्रेत से पीड़ा मिलती है।


10).पिशाच योग-

शनि के साथ केतु हो तो यह योग बनता है,इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है,इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है,ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं जिससे इनको धोका मिलता है ।इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है,कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं ।


11).केमद्रुम योग-

चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगेपीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र
पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले
ही करना पड़ता है ।


12).दरिद्र योग-

यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है। ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है।


13).कुज योग-

यदि किसी कुंडली में मंगल  लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।


14).षड़यंत्र योग-

यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन-संपत्ति का छीना जाना, विपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि।


15).भाव नाश योग-

जब कुंडली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और उससे भाव नाश योग केजते है। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।


16).अल्पायु योग-

जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है और उसकी आयु कम होती है।


17).कालसर्प दोष के प्रकार-

अनंत कालसर्प योग
अगर राहु  लग्न में बैठा है और केतु सप्तम में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तो कुंडली में अनंत कालसर्प दोष का निर्माण हो जाता है। अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती। इस प्रकार के जातक का वैवाहिक जीवन भी परेशानियों से भरा रहता है।

कुलिक कालसर्प योग
अगर राहु कुंडली के दुसरे घर में, केतु अष्ठम में विराजमान है और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में है तब कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में धन और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।

वासुकि कालसर्प योग
जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु विराजमान हो तथा बाकि ग्रह बीच में तो वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस प्रकार की कुंडली में बल और पराक्रम को लेकर समस्या उत्पन्न होती हैं।

शंखपाल कालसर्प योग
अगर राहु  चौथे घर में और केतु दसवें घर में हो साथ ही साथ बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे व्यक्ति के पास प्रॉपर्टी, धन और मान-सम्मान संबंधित परेशानियाँ बनी रहती हैं।

पद्म कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु, ग्याहरहवें भाव में केतु और बीच में अन्य ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे इंसान को शादी और धन संबंधित दिक्कतें परेशान करती हैं।

महा पद्म कालसर्प योग
अगर राहु किसी के छठे घर में और केतु बारहवें घर में विराजमान हो तथा बाकी ग्रह मध्य में तो तब महा पद्म कालसर्प योग का जन्म होता है। इस प्रकार के जातक के पास विदेश यात्रा और धन संबंधित सुख नहीं प्राप्त हो पाता है।

तक्षक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तो इनसे तक्षक कालसर्प योग बनता है। यह योग शादी में विलंब व वैवाहिक सुख में बाधा उत्पन्न करता है।

कर्कोटक कालसर्प योग
अगर राहु आठवें घर में और केतु दुसरे घर आ जाता है और बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो कर्कोटक कालसर्प योग कुंडली में बन जाता है। ऐसी कुंडली वाले इंसान का धन स्थिर नहीं रहता है और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

शंखनाद कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है। यह दोष भाग्य में रूकावट, पराक्रम में रूकावट और बल को कम कर देता है।

पातक कालसर्प योग
इस स्थिति के लिए राहु दसंम में हो, केतु चौथे घर में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तब पातक कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  काम में बाधा व सुख में भी कमी करने वाला बन जाता है।

विषाक्तर कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है। इस प्रकार की कुंडली में शादी, विद्या और वैवाहिक जीवन में परेशानियां बन जाती हैं।

शेषनाग कालसर्प योग
अगर राहु बारहवें घर में, केतु छठे में और बाकी ग्रह इनके बीच में हो तो शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतें, और कोर्ट कचहरी जैसी समस्याएं उत्पन्न करता है।
इन सारे दोष और योगों में से किसी भी दोष/योग का  शांति करेंगे तो बहोत ज्यादा खर्च होगा,इसलिए मैंने इनके निवारण हेतु एक अच्छा उपाय ढूंढा है,वह है तंत्र और तांत्रिक जड़ी बूटियों के माध्यम से बना हुआ कवच,जो इन दोष/योग से मुक्ति दे सकता है,इस कवच का निर्माण कुंडली के अध्ययन के बाद किया जाएगा और किसी शुभ मुहूर्त में कवच को बनाया जाएगा । इससे आपको कुछ ही दिनों में अच्छे परिणाम देखने मिलेंगे,इस कवच के निर्माण हेतु 1250/-रुपये धनराशि का खर्च आपको उठाना है ।कवच प्राप्त करने हेतु +918421522368 पर whatsapp से संपर्क करे ।


आदेश......



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